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________________ ५४ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन संख्या, साधु-साध्वियों की संख्या, अवधिज्ञानी, केवलज्ञानी और वैक्रिय ऋद्धिधारक, एवं वादियों की संख्या, प्रमुख आर्यिकाएँ, निर्वाणतिथि, नक्षत्र, स्थल, तीर्थंकरों का शासनकाल, तीर्थंकरों का अन्तराल आदि का विवरण सुव्यवस्थित रूप से उपलब्ध है । तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर तिलोयपण्णत्ति की विवरणशैली आवश्यकनियुक्ति के समान है । इसमें आवश्यकनियुक्ति के समान ही तीर्थंकरों के माता-पिता आदि का विवरण मिलता है । यद्यपि यह आवश्यकनियुक्ति की अपेक्षा परवर्ती है । पुराण साहित्य यद्यपि दिगम्बर परम्परा में तीर्थंकरों के जीवनवृत्त को बताने वाले आगमिक साहित्य का अभाव है, किन्तु उसमें पुराणों के रूप में अनेक ग्रन्थ लिखे गए हैं । इनमें तीर्थंकरों के जीवनवृत्त विस्तार से वर्णित हैं। इन पुराणों में जिनसेन और गुणभद्र की कृति महापुराण प्रसिद्ध है। इसका पूर्व भाग आदिपुराण और शेष भाग उत्तरपुराण के नाम से भी जाना जाता है। आदिपुराण में ऋषभ का और उत्तरपुराण में शेष सभी तीर्थंकरों का वर्णन है। दिगम्बर आचार्यों द्वारा रचित पुराण ग्रन्थ अनेक हैं यहाँ किन्तु उन सब की चर्चा करना सम्भव नहीं है। जैनसाहित्य में उपलब्ध तीर्थकर की अवधारणा का सर्वेक्षण तीर्थंकर की अवधारणा के सम्बन्ध में ऐतिहासिक दृष्टि से विचार करने पर हम यह पाते हैं कि लगभग ईसा की चौथी शताब्दी तक ऐसा कोई भी साहित्य हमें उपलब्ध नहीं होता है कि जिसमें २४ तीर्थंकरों की अवधारणा का विकसित रूप उपलब्ध होता हो । सम्भवतः सर्वप्रथम ईसा पूर्व तीसरी, दूसरी शताब्दी से हमें तीर्थंकरों की अवधारणा में अलौकिकता सम्बन्धी कुछ विवरण उपलब्ध होते हैं, किन्तु व्यवस्थित रूप से २४ तीर्थंकरों की कल्पना का कोई भी ऐतिहासिक प्रमाण हमें उपलब्ध नहीं होता है। हमें ऐसा लगता है कि जैन परम्परा में २४ तीर्थंकरों की सुव्यवस्थित अवधारणा और उनका नामकरण ईस्वी सन् की प्रथम शताब्दी के आसपास ही हुआ होगा, यद्यपि २४ तीर्थंकरों के नामोल्लेख करने वाले विवरण भगवती, समवायांग आदि में उपलब्ध हैं, किन्तु विद्वान् इन्हें ईसा की प्रथम शताब्दी या इनके परवर्ती काल का ही मानते हैं। यदि हम अन्य तीर्थंकरों के जीवनवृत्तों को एक ओर रख दें तो भी स्वयं महावीर के जीवनवृत्त में एक विकास देखा जा सकता है । आचाराङ्ग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के उपधान नामक ९वें अध्याय में वर्णित महावीर का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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