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________________ तोथंकर की अवधारणा : ४७ १५. मोक्षमार्ग प्रभावना :-अभिमान को त्यागकर मोक्षमार्ग की साधना करना तथा दूसरों को उस मार्ग का उपदेश देना। १६. प्रवचनवात्सल्य :-जैसे गाय बछड़े पर स्नेह रखती है, वैसे ही सह धर्मियों पर निष्काम स्नेह रखना। श्वेताम्बर परम्परा में ज्ञाताधर्मकथा के आधार पर तीर्थंकर नामकर्म के उपार्जन हेतु निम्न (२०) बीस साधनाओं को आवश्यक माना गया है१-७. अरिहंत, सिद्ध, प्रवचन, गुरु, स्थविर, बहुश्रुत एवं तपस्वी इन सातों के प्रति वात्सल्य-भाव रखना। ८. अनवरत ज्ञानाभ्यास करना । ९. जीवादि पदार्थों के प्रति यथार्थ श्रद्धारूप शुद्ध सम्यक्त्व का होना। १०. गुरुजनों का आदर करना। ११. प्रायश्चित्त एवं प्रतिक्रमण द्वारा अपने अपराधों की क्षमायाचना करना। १२. अहिंसादि व्रतों का अतिचार रहित योग्य रीति से पालन करना । १३. पापों की उपेक्षा करते हए वैराग्यभाव धारण करना । १४. बाह्य एवं आभ्यन्तर तप करना । १५. यथाशक्ति त्यागवत्ति को अपनाना। १६. साधुजनों को सेवा करना। १७. समता भाव रखना। १८. ज्ञान-शक्ति को निरन्तर बढ़ाते रहना । १९ आगमों में श्रद्धा करना। २०. जिन प्रवचन का प्रकाश रखना । १०. तीर्थङ्करों से सम्बन्धित विवरण का विकास तीर्थंकरों की संख्या एवं उनके जीवनवृत्त आदि को लेकर सामान्यतया जेनसाहित्य में बहुत कुछ लिखा गया किन्तु यदि हम ग्रन्थों पर कालक्रम की दृष्टि से विचार करें तो प्राचीनतम जैन आगम आचारांग में महावोर के संक्षिप्त जीवनवृत्त को छोड़कर हमें अन्य तीर्थंकरों के संदर्भ में कोई जानकारी नहीं मिलती। यद्यपि आचारांग सामान्यरूप से भूतकालिक, वर्तमानकालिक और भविष्यकालिक अरहंतों का बिना किसी नाम के निर्देश अवश्य करता है। रचनाकाल को दृष्टि से इसके पश्चात् कल्पसूत्र का क्रम आता है उसमें महावीर के जोवनवृत्त के साथ-साथ पार्श्व, अरिष्ट १. ज्ञाताधर्मकथा, १।८।१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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