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४४ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
११. असन्दिग्धत्व :- सन्देह-रहित निश्चित अर्थ का प्रतिपादक होना । १२. अपहृतान्योत्तरत्व :- अन्य पुरुषों के दोषों को दूर करने वाला होना । १३. हृदयग्राहित्व :- श्रोताओं के हृदय को आकृष्ट करने वाले वचन वाला होना ।
१४. देश कालाव्ययीतत्व :- देश - काल के अनुकूल वचन होना । १५. तत्वानुरूपत्व :- विवक्षित वस्तु स्वरूप के अनुरूप वचन होना । १६. अप्रकीर्ण प्रसृतत्व :- निरर्थक विस्तार से रहित सुसम्बद्ध वचन होना । १७. अन्योन्य प्रगृहीत :- परस्पर अपेक्षा रखने वाले पदों एवं वाक्यों से युक्त होना ।
१८. अभिजातत्व :- वक्ता को कुलीनता और शालीनता के सूचक होना । १९. अतिस्निग्ध मधुरत्व :- अत्यन्त स्नेह एवं मधुरता से युक्त होना । २०. अपरममवेधित्व : - मर्मवेधी न होना ।
२१. अर्थधर्माभ्यासानपेतत्व :- अर्थ और धर्म के अनुकूल होना । २२. उदारत्व :- तुच्छता रहित और उदारता युक्त होना ।
२३. परनिन्दात्मोत्कर्षविप्रयुक्तत्व :- पराई निन्दा और अपनी प्रशंसा से रहित होना ।
२४. उपगतश्लाघत्व :- जिन्हें सुनकर लोग प्रशंसा करें, ऐसे वचन होना । २५. अनपनीतत्व :-काल, कारक, लिंग व्यत्यय आदि व्याकरण के दोषों से रहित होना ।
२६. उत्पादिताच्छिन्न कौतूहलत्व :- अपने विषय में श्रोताजनों को लगातार कौतूहल उत्पन्न करने वाला होना ।
२७. अद्भुतत्व :- आश्चर्यजनक अद्भुत नवीनता प्रदर्शक वचन होना । २८. अनतिविलम्बित्व :- अतिविलम्ब से रहित धाराप्रवाह से बोलना | २९. विभ्रम, विक्षेप किलिकिञ्चितादि विमुक्तत्व :- मन की भ्रान्ति, विक्षेप और रोष, भयादि से रहित वचन होना ।
३०. अनेक जातिसंश्रयाद्विचित्रत्व :- अनेक प्रकार से वर्णनीय वस्तु स्वरूप के वर्णन करनेवाले वचन होना ।
३१. आहित विशेषत्व :- सामान्य वचनों से कुछ विशेषतायुक्त वचन होना | ३२. साकारत्व :–पृथक् पृथक् वर्ण, पद, वाक्य के आकार से युक्त वचन होना ।
३३. सत्वपरिगृहीतत्व :- साहस से परिपूर्ण वचन होना ।
३४. अपरिखेदित्व :- खेद - खिन्नता से रहित वचन होना ।
३५. अव्युच्छेदित्व :- विवक्षित अर्थ की सम्यक् सिद्धि वाले वचन होना ।
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