SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन छोड़ दूँ, फिर भी मैं तब तक नहीं रुकूँगा, जब तक मैं ऐसा करते हुए मर नहीं जाता हूँ ।" धीरे-धीरे लोगों ने इस्लाम को ग्रहण किया । मक्का में विरोध के कारण उन्होंने मदीने की यात्रा (हिजरत) की और वहाँ अनेक लोगों को इस्लाम में दीक्षित किया । इसी घटना से मुसलमानी सन् या हिजरी सन् की शुरुआत हुई । धीरे-धीरे मुहम्मद के अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी । अन्त में उन्होंने मक्का पर विजय प्राप्त की । खैबर में एक यहूदी स्त्री द्वारा विष दिये जाने से उनकी मृत्यु हो गई । उनके अन्तिम शब्द थे - " प्रत्येक मनुष्य को अपनी मुक्ति के लिए साधना करनी चाहिये ।" इस प्रकार हजरत मुहम्मद साहब ने अल्लाह के द्वारा प्राप्त उपदेशों को मानव मात्र के कल्याण के लिए कहा । इस्लाम में संयम, आज्ञापालन एवं प्रार्थना पर जोर दिया गया है। इस्लाम धर्मं की एक पुस्तक 'हदीस', जिसमें पैगम्बर मुहम्मद साहब के वचन हैं, कहा गया है कि विश्व में मानव कल्याण को लेकर अब तक लगभग १ लाख २४ हजार पैगम्बर हो चुके हैं । किन्तु इनका विस्तृत विवरण कहीं भी उपलब्ध नहीं है । इस्लाम धर्म के धर्मग्रन्थ 'कुअन शरीफ' के विभिन्न पारों में मुहम्मद साहब के पूर्व २२ पैगम्बरों के नाम मिलते हैं । जिन्हें एक तालिका द्वारा परिशिष्ट में दर्शाया गया है । वस्तुतः हिन्दू, जैन, बौद्ध, पारसी, यहूदी, ईसाई और इस्लाम सभी धर्मों में यह माना गया है कि मनुष्य के आध्यात्मिक विकास के लिए और परमात्मा से जुड़ने के लिए, मार्गदर्शक के रूप में एक महान् व्यक्तित्व की आवश्यकता होती है । राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, ईसा और मुहम्मद सभी ऐसे महान् व्यक्तित्व हैं जो जन कल्याण के लिए समय समय पर प्रकट होते हैं । जैन और बौद्ध धर्म ईश्वर की अवधारणा में विश्वास नहीं करते हैं, परन्तु वे भी इतना तो अवश्य मानते हैं कि मनुष्य के मार्गदर्शन के लिए समय समय पर कुछ महान् व्यक्तित्वों का जन्म होता रहता है । जैन, बौद्ध आदि श्रमण परम्पराएं यह मानती हैं कि कुछ ऐसे व्यक्तित्व होते हैं, जो अपनी आध्यात्मिक विशुद्धि और नैतिक साधना के माध्यम से १. मुहम्मद पैगम्बर की वाणी पृ० ४ २. वही, पृ० ३. देखें- परिशिष्ट 'क' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy