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________________ विषय प्रवेश : १९ इस परीक्षा के बाद अशुभ निराश होकर चला जाता है। ज्ञान का पूर्ण प्रकाश प्राप्त कर जरथुस्त्र ने नवीन धर्म का प्रवर्तन किया । जरथुस्त्र को अपने जन्मस्थान के निकट दरागा नदी के समीप स्थित "युशीडारिना पर्वत" पर 'अवेस्ता' का ईश्वरीय प्रकाश प्राप्त हुआ था। १२. यहूदी धर्म और पैगम्बर मोजेज यहूदी धर्म के प्रादुर्भाव के पूर्व हिब्रू जाति के लोग अनेकेश्वरवाद में विश्वास किया करते थे, प्राचीन हिन्दुओं के समान ही वे पहाड़, नदी, झरना, आकाश आदि को अपनी आवश्यकता के अनुसार ईश्वर मानते थे। कहा जाता है कि जलप्लावन के पश्चात् यहूदी मिस्र में जा बसे, बहुत दिनों तक इनका सम्बन्ध चाल्डी सभ्यता से रहा। कालान्तर में मिस्र का राजा फराओ यहूदियों से असन्तुष्ट हो गया और यहूदियों पर अत्याचार करने लगा। इस अन्याय को सहन न कर सकने के कारण यहूदियों ने मुक्ति के लिए ईश्वर को पुकारा । उनका विश्वास है कि परमेश्वर ने उनकी पुकार सुनकर कहा कि मैं अपने दूत को भेजता हूँ जो तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा। इस प्रकार परमेश्वर याहवेह ने मोजेज को अपने प्रतिनिधि के रूप में इज़रायल के लोगों को उचित मार्गदर्शन के लिए भेजा । कहते हैं कि परमेश्वर ने होरेव नाम पर्वत के पास जलती हुई कटीली झाड़ी के बीच मोजेज को दर्शन दिया था। ईश्वर ने उसके समक्ष अपना नाम प्रकाशित किया तथा उपदेश दिया एवं उसे चमत्कारिक शक्ति दी। इस प्रकार मोजेज ने यहूदी धर्म का प्रवर्तन ईश्वरीय आदेश के आधार पर किया और एकमात्र ईश्वर यहोवा के प्रति आस्थावान् होने को कहा । मोजेज यहदियों को मिस्र से निकालकर लाल सागर के पूर्व की ओर ले गए। यहाँ सिनाई पर्वत पर मोजेज को याहवेह द्वारा न्याय और कर्तव्य सम्बन्धी १० आज्ञायें प्राप्त हुई। तदनुसार मोजेज ने उन आज्ञाओं का प्रचार . १. देखें-पारसी धर्म एवं सेमेटिक धर्मों में मोक्ष की धारणा, पृ० २५ । २. एक्सोडस ३:१६ उद्धृत-पारसी धर्म एवं सेमिटिक धर्मों में मोक्ष की धारणा, पृ० ११५ ३. वही ३:१३-१४ उद्धृत-वही ४. वही ४:२-४ उद्धृत-वही ५, Ten Commandments उद्धृत-वही, पृ० ११६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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