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________________ १८ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन वाला व्यक्ति । परन्तु कुछ विद्वान् 'जरथा' का अर्थ 'सुनहराप्रकाश ' बताते हैं अर्थात् 'सुनहरे प्रकाश' वाला व्यक्ति । उनके इस नाम का एक अर्थ साधक या पुजारी भी समझा जाता है । यह नाम उनको सम्भवतः अपनी साधना के बल पर उसी प्रकार प्राप्त हुआ होगा, जिस प्रकार बौद्ध धर्म में राजकुमार सिद्धार्थ ज्ञान प्राप्त करने के उपरान्त 'बुद्ध' और ईसा को 'क्राइस्ट' कहा जाने लगा ।' अतः उनके लिए प्रकाश का वाचक जरथुस्त्र शब्द उचित ही है क्योंकि उन्होंने समस्त जगत् को प्रकाश का मार्ग दिखाया | पन्द्रह वर्ष की अवस्था में जरथुस्त्र के पिता की सम्पत्ति का बंटवारा हुआ तो उन्होंने केवल पवित्र 'गर्डल ' ( सूत्र ) ही लिया । इस प्रकार उन्होंने सांसारिक सुख भोग की अपेक्षा धार्मिक जीवन में रुचि प्रकट की । वे अत्यन्त दयालु प्रकृति के थे । २० वर्ष की अवस्था में उन्होंने गृह त्यागकर पर्वतों पर रहते हुए नैतिक भलाई के लिए तात्त्विक प्रश्नों पर विचार करना प्रारम्भ कर दिया था। वह प्रकाशमान ईश्वर अहुरमज़दा के अन्वेषक थे । 'वह पवित्रों में भी पवित्र थे' फिर भी उन्होंने स्वयं को कभी भी ईश्वर या ईश्वरीय गुणसम्पन्न नहीं कहा । एकान्त साधना के साथ-साथ जरथुस्त्र में सांसारिक जीवन की विशुद्धता की भी पराकाष्ठा थी। दूसरों की सेवा ही उनकी दृष्टि में उच्चतम आध्यात्मिक जीवन का ध्येय था । उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक पवित्रता एवं नैतिक-सदाचरण के द्वारा मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है । ईश्वर की खोज में लीन जरथुस्त्र को अशुभदेव अंग्रमैन्यू से युद्ध करना पड़ा । जिस प्रकार महावीर को संगम ने, गौतम (सिद्धार्थ) को मार ने तथा ईसा को "शैतान" ( इबलिस) ने प्रलोभन दिया था, उसी प्रकार अशुभ ने जरथुस्त्र को संसार का अधीश्वर बना देने का प्रलोभन दिया, जिसे उन्होंने पूर्णतया अस्वीकार कर दिया है । " १. The Religion of Zarathushtra, p. 23 by I. J. S. Taraporewala. उद्धृत - पारसी धर्म एवं सेमेटिक धर्मों में मोक्ष की धारणा, पृ० २४ २. 'No, I shall not renounce that Good Religion of worshi• ppers of Mazda, not though life and limb and soul should part as under." - Jackson Zoroaster, द्रष्टव्य वही, पृ० २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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