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उपसंहार : २९१ मूलक और प्रवृत्तिमूलक दृष्टि के कारण है । जैन और बौद्ध धर्म निवृत्तिमूलक हैं। इसीलिए वे तीर्थंकर और बुद्ध को भी लोकमंगल का सक्रिय भागीदार नहीं बना सके । यद्यपि महायान ने इस दिशा में एक कदम आगे बढ़ाया है, जबकि हिन्दू धर्म मूलतः प्रवृत्तिमार्गी है अतः वह अपने ईश्वर या अवतार को लोककल्याण का सक्रिय भागीदार बना सका है। वह भक्त को पीड़ा दूर करने हेतु भागा चला जाता है ।
यद्यपि तीनों ही धर्मों में अपने उपास्य के प्रति आस्था और श्रद्धा को आवश्यक माना गया है, फिर भी जैन धर्म और बौद्ध धर्म उतने आस्था प्रधान और भक्ति प्रधान नहीं बन सके, जितना कि हिन्दू धर्म । जहाँ बौद्ध धर्म में ज्ञान या प्रज्ञा को प्रधानता मिली, वहाँ जैन धर्म चारित्र या सदाचरण प्रधान बना, जबकि हिन्दू धर्म और विशेष रूप से वैष्णव धर्म में प्रारम्भ से अन्त तक श्रद्धा या भक्ति तत्व ही प्रधान बना रहा । इस प्रकार हम देखते हैं कि तीर्थकर, बुद्ध और अवतार की अवधारणा में बहत कुछ समानता होते हुए भी मौलिक अन्तर है। हमें ऐसा लगता है कि अवतारवाद की अवधारणा के प्रभाव के कारण ही जैन और बौद्धधर्म में २४ तीर्थंकर या २४ बुद्धों की कल्पना आई होगी। जैनधर्म और बौद्धधर्म के साहित्य का अवलोकन करने पर भी यह स्पष्ट हो जाता है कि २४ तीर्थंकरों और २४ बुद्धों की अवधारणा का विकास ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी में ही हुआ है, यही काल पांचरात्र सम्प्रदाय एवं वैष्णव धर्म के विकास का भी काल है । सम्भवतः बौद्ध धर्म में जो महायान का विकास हआ है और त्रिकायवाद की अवधारणा आई, वह भो बहुत कुछ वैष्णव धर्म का ही प्रभाव रहा हो । यद्यपि कुछ लोग यह भी कहने का साहस कर सकते हैं कि महायान का विकास वैष्णव धर्म के विकास का कारण बना हो, किन्तु जैन और बौद्ध धर्म की मूलभूत निवृत्तिमार्गी दृष्टि को ध्यान में रखते हुए, हमें यही कहना पड़ेगा कि उनमें तीर्थंकरों और बुद्धों का दैवीपकरण बहुत कुछ हिन्दू परम्परा के प्रभाव के कारण ही हुआ है । पुनः तीर्थकर और बुद्ध वीतराग और वीततृष्ण होने के कारण वे अपने भक्तों के कल्याण के सक्रिय भागीदार नहीं हो सकते, इसो को पूर्ति के लिए जहाँ जैन धर्म में शासन रक्षक देवता के रूप में पद्मावती, अम्बिका और चक्रेश्वरी तथा यक्ष-यक्षी की कल्पना विकसित हई, वहीं बौद्धधर्म में तारा आदि की अवधारणा विकसित हई । मात्र यही नहीं, इन धर्मो में तीर्थङ्कर और बुद्ध को अतिमानवीय बनाने के लिए इन्द्र और देवताओं को उनका
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