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२७४ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन दर्शन में सभी राजा हैं, सभी समान हैं, उनमें राजा-प्रजा, स्वामी-सेवक, गुरु-शिष्य ऐसा कोई भी वैत नहीं है । “१०. तीर्थंकर एवं अवतार की समानता __ जैन साहित्य में तीर्थकर अपने उपास्य रूप में अधिक ग्राह्य होने के कारण अपने सम्प्रदाय में देवाधिदेव परमात्मा के रूप में ग्रहीत हुए। जैनधर्म में तीर्थङ्कर के सहस्र विभिन्न नामों का उल्लेख विष्णु के सहस्र नाम के समान हुआ है। पुष्पदन्त ने अपने महापुराण में इन्हें अनेक स्थलों पर पौराणिक देवों की अपेक्षा विष्णु से अभिहित किया है। महापुराण में ऋषभ को प्रार्थना करते हुए उन्हें आदि वराह के रूप में पृथ्वी का उद्धारक कहा गया है । इसी प्रकार विष्णु के वराहावतार में उनसे पृथ्वी के उद्धार की प्रार्थना की गई है । मधु और माधव को मारने वाले वे तोनों लोकों के स्वामी मधुसदन कहे गए हैं। इसी प्रकार विष्णु को भी मधुसूदन कहा गया है। ऋषभ को गोवर्धनधारी, परमहंस और केशव' कहा गया है। अजितनाथ तीर्थङ्कर को (वसुवई) श्री और (वसुमई) पृथ्वी का पति कहा गया है ।' अवतार परम्परा में दोनों विष्णु की पत्नियाँ मानी गई हैं। एक तीर्थङ्कर को गोपाल (गोवालु) नाम से अलंकृत किया गया । १. "वैयगंववाई जयकमल जोणि आईवराह उद्धरिय रवोणि"-महापुराण जी०,
१.१०. ५.१० २. "जयमाहव तिहुवणमाहवेस; महुसूयण डसिय महुँ विसेस ।
वही, जी० १.१०.५.१४ ३. “गोवद्धण" का अर्थ श्री वैद्य ने ज्ञानवर्धन किया है, किन्तु अन्य स्थलों
पर कृष्ण से सम्बन्धित गोवर्द्धन के लिए भी 'गोवद्धण' का प्रयोग हुआ है। जैसे महापुराण जी० ३.८५.१६ द्रष्टव्य-मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद,
पृ० ९१ 'गिरि गोद्धणउ गोवद्धणेण उच्चाइउ' । ४. 'जयालोअणि ओइय परमहंस योवद्धण केसव परमहंस ।'
वही, पृ० १.१०.४.१५ ५. 'वसुवइवसुमई कताकते ।'-वही, २.३८.१८.१० ६. “जई तुहुं गोवालु णियारिचंडु तो काई णस्थि करि तुज्झ दंडु।"
-महापुराण, पृ० २.४८.१०.२ उद्धृत-मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद, पृ० ९२
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