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________________ अवतार को अवधारणा : २४१ क्योंकि उसमें दोनों युगों को विशेषताएँ मौजूद हैं अर्थात् वह जल एवं स्थल दोनों जगह रह सकता है । वराह में भी सरीसृप ( रेंगने वाले ) युग के अन्तिम अवस्था के गुण- पेट का बड़ा होना, मुँह का लम्बा होना तथा "मैं मिलियन' युग के पावों से दौड़ना तथा दुग्धपान कराना आदि गुण "रेपिटिलियन" और " मैमिलियन" युगों के सन्धिकाल के द्योतक प्रतीत होते हैं । इसी प्रकार "नृसिंह" में "मैमिलियन" और "ऐन्थ्रोपोआयड" युग के सन्धिकाल के गुण अर्द्ध - पशु और अर्द्ध - मानव प्रतीत होते हैं । 'वामन' 'ऐन्थ्रोपोआयड' प्राणी के आकार का लघुमानव रूप का द्योतक है । प्रागैतिहासिक पुरातत्व विज्ञानवेत्ता पूर्वपाषाण युग और नवपाषाण युग के बीच में एक सन्धि पाषाण युग ( Mesolithic Period) मानते हैं ।' इस युग तक मानव शिकारी अवस्था के पश्चात् पशु-पालन एवं आंशिक कृषि अवस्था तक पहुँच चुका था । परशुराम इसी युग के प्रतीक थे । गाधि को ऋचीक द्वारा दिये अश्व तथा कामधेनु को लेकर परशुरामसहस्रबाहु युद्ध पशु-पालन को द्योतित करते हैं । राम युग में जन जाति पराक्रम के विकसित और अविकसित ऐसे दो रूप मिलते हैं जिनमें परस्पर संघर्ष होते रहते थे । इस युग में इन दो संस्कृतियों के समन्वय से आदर्श राजतन्त्र की स्थापना हुई । इस प्रकार राम पशुपालन युग और कृषि प्रधान राजतन्त्रीय समाज व्यवस्था के सन्धि काल के प्रतीक कहे जा सकते हैं। राम का काल आर्य और द्रविड़ संस्कृतियों के समन्वय का काल भी माना जा सकता है। कृष्ण के युग तक राजतन्त्र का बहुत ही विकास एवं प्रसार हो चुका था तथा जनतन्त्र का प्रारम्भ हो गया था । कृष्ण का अवतरण अनेक राज्यों के स्वार्थपरक संघर्षों के काल में होता है । इस प्रकार कृष्ण सामन्तवाद एवं साम्राज्यवाद के सन्धि युग के प्रतीक विदित होते हैं । जब मानवीय भोग-लिप्सा एवं भौतिक उपभोग्य सामग्रियों की प्रचुरता ने मानव की तृष्णा को अपनी चरम सीमा पर पहुँचा दिया, तब उस सम्पृक्त बिन्दु पर पहुँच कर भोगासक्त मानव में अहिंसा और अनासक्ति की भावना का उदय हुआ, बुद्ध इसी अवस्था के प्रतीक हैं । इस युग के परिचायक महावीर, कन्फ्यूसियस, ईसा, जरथुस्य इत्यादि भी कहे गये हैं । १. मानवशास्त्र, पृ० १०० १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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