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८ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन उपलब्धि के लिए उस धर्म के अनुयायी जीवन भर प्रयत्नशील रहते हैं। साथ ही व्यक्ति का धार्मिक जीवन कैसा हो, इसका एक मानदण्ड या आदर्श होना भी आवश्यक है। सभी धर्मों में अपने धर्मप्रवर्तक के जीवन को धार्मिक साधना के आदर्श के रूप में स्वीकार किया गया है। जिस प्रकार जैनधर्म में व्यक्ति के जीवन का चरम साध्य जिनत्व को प्राप्त करना है। उसी प्रकार बौद्ध धर्म में जीवन का चरम साध्य बद्धत्व की प्राप्ति या बोधिसत्त्व होना माना गया है। हिन्दू धर्म में यद्यपि साधना के लक्ष्य के रूप में ईश्वर का सान्निध्य या ईश्वर की प्राप्ति हो मुख्य है किन्तु उस ईश्वर का जगत् में यथार्थ प्रतिनिधि तो अवतारी पुरुष के जीवन का आदर्श हो होता है। इसी प्रकार ईसाई और इस्लाम धर्मों में भी ईश्वर की प्राप्ति को हो साधना का आदर्श माना गया है किन्तु ईश्वर के सान्निध्य को प्राप्त करने के लिए दोनों धर्म क्रमशः ईश्वरपूत्र या पैगम्बर के समान जीवन शैली को अपनाना आवश्यक मानते हैं। इस प्रकार तीर्थंकर, बुद्ध, अवतार, ईश्वरपुत्र या पैगम्बर का जीवन उन-उन धर्मों के अनुयायियों के लिए आदर्श एवं अनुकरणीय जीवन होता है । जीवन के इस आदर्श की यथार्थ प्रस्तुति के लिए प्रत्येक धर्म में किसी न किसी मार्गप्रवर्तक को स्वीकार किया गया है। जहाँ तक ईश्वरवादी धर्मों का सम्बन्ध है उन्होंने जीवन का चरम साध्य ईश्वर के सान्निध्य को प्राप्त करना स्वीकार किया है उनमें अवतारी पुरुषों के जीवन को एक आदर्श जीवन के रूप में स्वीकार किया गया और यह माना गया कि उन अवतारी पुरुषों के अनुरूप जीवन जीकर या उनके उपदेशों का पालन करके ईश्वर के सान्निध्य को प्राप्त किया जा सकता है।
जहाँ तक अनोश्वरवादो धर्मों का प्रश्न है वे तो स्पष्ट रूप से अपने धर्म प्रवर्तक को ही अपनी साधना के उच्चतम आदर्श के रूप में स्वीकार करते हैं, इन धर्मों में उस आदर्श या ऊँचाई तक पहुँचने के लिए धर्म साधना को आवश्यक माना गया है। तीर्थंकर और बुद्ध न केवल धर्मप्रवर्तक हैं अपितु धार्मिक साधना के चरम आदर्श या साध्य हैं, उन्हें साध्य इस अर्थ में कहा जाता है कि इन धर्मो में प्रत्येक व्यक्ति को जिनबोज या बुद्ध-बीज माना जाता है और व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि साधना के द्वारा अपने प्रसुप्त बुद्धत्व या जिनत्व को उपलब्ध करे । इन धर्मों में तीर्थंकर या बुद्ध की उपासना उनके सान्निध्य लाभ के लिए नहीं अपितु उनके जैसा बनने के लिए की जाती है ।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रत्येक धर्म के लिए तीर्थंकर, बुद्ध,
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