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________________ अवतार की अवधारणा : २२७ की श्वेतता एवं उड़ने की शक्ति के कारण आदित्य का प्रतीक कहा है। महाभारत में प्रजापति के अवतार रूप हंस साधुओं को उपदेश देते हैं।' छान्दोग्योपनिषद् में साधुओं का सम्बन्ध ब्रह्मा से बताया गया है। विष्णु सहस्रनाम में विष्णु के लिए प्रयुक्त हंस शब्द की व्याख्या करते हुए शंकर कहते हैं कि 'हंस' तादात्म्य भावना से संसार का भय नष्ट करते हैं, इसलिए हंस हैं अथवा आकाश में चलने वाले सूर्य के सदृश सभी शरीरों में व्याप्त हो जाते हैं इसलिए हंस हैं। इस व्याख्या से हंस का विष्णु से आत्मरूपात्मक सम्बन्ध परिलक्षित होता है। श्रीमद्भागवत में सभी स्थलों पर हंसावतार का उल्लेख उपलब्ध नहीं है, फिर भी हंसावतार और हंसउपास्य दोनों का उल्लेख हमें मिलता है। भागवत के द्वितीय स्कन्ध में भगवान् नारद को उपदेश देने के लिए हंस रूप में आविर्भूत होते हैं। भागवत के दूसरे स्थल पर ब्रह्मा द्वारा नारद को उपदेश देने का आख्यान उपलब्ध होता है ।' पुनः ‘एकादश स्कन्ध' में श्रीकृष्ण के द्वारा ब्रह्मा जी को परमतत्व का उपदेश देने का उल्लेख मिलता है ।। इस प्रकार हम देखते हैं कि 'महाभारत' के अतिरिक्त भागवत में भी हंस का ब्रह्मा से किसी न किसी रूप में सम्बन्ध लक्षित होता है । भागवत के अनुसार सत्ययुग के मनुष्य का सम्भवतः वैदिककालीन पुरुष, हंस, सुपणं, वैकुण्ठ, परमपद, धर्म, योगेश्वर, अमल, ईश्वर, पुरुष, अव्यक्त और परमात्मा आदि नामों से उपास्य का लोलागान करते हैं। अतएव उपास्य १. महाभारत, शान्तिपर्व २९६।३-४ २. छान्दोग्योपनिषद् ३/१०/१-३ ३. मरीचिदमनो हंसः सुपर्णोभुजगोत्तमः । हिरण्यनामः सुतपाः पद्मनाभः प्रजापतिः ॥ -विष्णुसहस्रनामस्तोत्रम्-३४ ४. तुभ्यं च नारद भृशं भगवान् विवृद्धभावेन साधु परितुष्ट उवाच योगम् । ज्ञानं च भागवतमात्मसतत्वदीपं यद्वासुदेवशरणा विदुरञ्जसैव ।। -भा० २/७/१९ ५. वही, २/:०/४२-४३ ६. स म मचिन्तयद् देवः प्रश्नपारतितीर्षया । __तस्याहं हंसरूपेण सकाशमगमं तदा ।। -वही, ११/१३/१९ ७. हंसः सुपर्णो वैकुण्ठो धर्मो योगेश्वरोमलः । ईश्वरः पुरुषोव्यक्तः परमात्मेति गीयते ।। -वही, ११/५/२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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