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१९८ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन के एक कथानक में नमुची इन्द्र से प्रार्थना करता है कि वे उसे ऐसा वरदान दें जिससे वह न वज्र से मरे, न सूखे स्थान, न गीले स्थान में, न रात, न दिन में मरे।' सम्भवतः ऋग्वेद का उपर्युक्त कथानक ही नृसिंहावतार की पृष्ठभूमि बना। भागवत में इन्द्र द्वारा नमुची के वध की कथा है। जिसमें इन्द्र सूखी व गीली वस्तु से न मारकर फेन द्वारा मारते हैं जो न सूखा होता है, न गीला होता है । हिरण्यकश्यप के वध की कथा इससे प्रभावित होती है। __महाभारत में भी नृसिंह द्वारा हिरण्यकश्यप के वध की कथा मिलती है। विष्णुपुराण में भी प्रहलाद के निमित्त विष्णु द्वारा हिरण्यकश्यप वध की कथा है ।' भागवत में विभिन्न स्थलों पर भी नृसिंह-हिरण्यकश्यप कथा सूक्ष्म अन्तर से परिलक्षित है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि विष्णु के नृसिंहावतार को कथा का मुख्य प्रयोजन अपने भक्त का उद्धार एवं दुष्ट का वध रहा है । (५) वामन अवतार:
वामन एवं विष्णु का सम्बन्ध उनके नाम को अपेक्षा उनके “तीन पगों" के पराक्रम से अधिक सम्बद्ध प्रतीत होता है। वामन का
"त्रिविक्रम" और विष्णु का "उरुक्रम" उनके तीन पगों की ओर संकेत करते हैं । ऋग्वेद में विष्णु द्वारा तीन पगों से सम्पूर्ण पृथ्वी को नापने का उल्लेख है। उनके तोन पगों के बीच सम्पूर्ण विश्व निवास करता है वे तीनों लोकों को धारण करने वाले हैं । ___ यजुर्वेद एवं अथर्ववेद में विष्णु के तीन पगों के सम्बन्ध में ऋचायें मिलती हैं। इन ऋचाओं में प्रयुक्त तीन पदाक्रम का भाव निरुक्तकार ने पथ्वी, आकाश, स्वर्ग से, दुर्गाचार्य ने से अग्नि, वायु और सूर्य और अरुणाभ ने सूर्य के उदय-मध्य और अस्त से लिया है । किन्तु भाष्य
१. ऋग्वेद ८/१४/१३ : यजुर्वेद १९/७१; भागवत् ८/११/३२-४० २. महाभारत, शान्तिपर्व ३३९/७८ ३. विष्णुपुराण १/१६-२० ४. भागवत १/३१८; २/७/१; ११/४/१९ ५. ऋग्वेद १/२२/१६-१९, १/१५४/१, ३, ४ ६. यजुर्वेद ३/१, ३४/४३; अथर्ववेद ७/२६/४
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