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________________ · अवतार की अवधारणा : १९५ है । भागवत्', अग्निपुराण, पद्मपुराण में कूर्म रूप में विष्णु के अवतार का प्रयोजन समुद्र मन्थन के समय मन्दराचल को धारण करने का आधार रहा है। इस प्रकार कूर्मावतार का मुख्य प्रयोजन देव और असुरों के मध्य समुद्र-मन्थन के समय मन्दराचल पर्वत को आधार प्रदान करना था ताकि वह पर्वत मथानी के रूप में कार्य कर सके । (३) वराह : अवतार __ अवतार की अवधारणा का विकास जन्तु, पशु, पशु-मानव एवं मानव इन चार श्रेणियों में पाया जाता है। इसमें वराह को पशु अवतार कहा गया है। ऋग्वेद में विभिन्न स्थानों पर वराह का उल्लेख मिलता है। उसमें इन्द्र द्वारा वराह के वध का वर्णन है । इन्द्र “एमुष" नामक वराह को मारते हैं। आगे चलकर ऋग्वेद में इन्द्र एवं वराह का सम्बन्ध बताया गया है। सम्भवतः ऋग्वेद का वराह और कालान्तर में विकसित वराहावतार दो भिन्न-भिन्न कथाएं हैं; क्योंकि अवतार का वध किसी भी दशा में सम्भव नहीं। यद्यपि पाश्चात्य दार्शनिक मैक्डोनल ने अपनी पुस्तक एपिक माइथोलोजी में "ऋग्वेद" के एमुष नाम के वराह से वराहावतार के बीज का अनुमान किया है। परन्तु कीथ ने वराह-कथा को वृत्रवध की कथा का रूपान्तर कहा है। अथर्ववेद में कहा गया है कि वह पृथ्वी, जो बड़े-बड़े पदार्थों, शत्रुओं एवं पाप-पुण्य के करने वालों के शव को सहन करती है, वराह को प्राप्त १. भागवत १.३.१६; २.७.१३; ११.४.१८ २. अग्निपुराण अध्याय ३ : द्रष्टव्य-मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद, पृ० ४२० ३. पद्मपुराण, उत्तर खण्ड अध्याय २६० : द्रष्टव्य-वही, पृ० ४२० ४. ऋग्वेद १.६१.७ ५. वही, ८.७७.१० ६. वही, १०.८६.४ ७. एपिक माइथोलाजी, पृ० ४१ ८. रीलिजन एण्ड फिलोसोफी आफ ऋग्वेद एण्ड उपनिषद्, भूमिका, पृ० ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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