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१९४ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
इस प्रकार हम देखते हैं कि मत्स्यावतार का प्रयोजन मुख्यतः मनु की रक्षा से सम्बन्धित है। (२) कूर्म अवतार
कूर्मावतार में विष्णु का प्रयोजन अन्य अवतारों को तरह राक्षस वध एवं पृथ्वी का उद्धार न होकर प्रजा की सृष्टि करना रहा है। शतपथब्राह्मण' एवं जैमिनिब्राह्मण में प्रजापति के द्वारा कूर्म रूप धारण कर प्रजा की सृष्टि करने का उल्लेख मिलता है।
जे० गोद ने अपनी पुस्तक 'आस्पैक्ट्स आफ वैष्णविज्म' में कूर्म को जल देवता वरुण से सम्बन्धित किया है। उन्होंने विष्णु एवं वरुण दोनों को पृथ्वी का पति माना है। इस कारण से कूर्म का विष्णु से सम्बन्ध होने की सम्भावना प्रतीत होती है।३
इस प्रकार वैदिक ग्रन्थों में मत्स्य, वराह एवं कूर्म का सम्बन्ध प्रजापति से रहा है। विष्णुपुराण में भी मत्स्य, वराह एवं कूर्म को प्रजापति का रूप कहा गया है। ___ऐतरेयब्राह्मण"५ में देवों एवं असुरों के द्वारा समुद्र-मन्थन का प्रकरण मिलता है, परन्तु महाभारत में देवताओं के द्वारा समुद्र मन्थन के लिए कूर्म से अपनी पीठ पर मन्दराचल को धारण करने के आग्रह का उल्लेख है। लेकिन यहाँ कूर्म का सम्बन्ध प्रजापति या विष्णु से नहीं बताया गया है।
वाल्मीकि रामायण में भगवान् के कूर्म रूप धारण एवं समुद्र-मन्थन को कथा का प्रसंग मिलता है। पुनः विष्णुपुराण में भगवान् के कर्मरूप धारण एवं क्षीरसागर में मन्दराचल को धारण करने की कथा मिलती
१. शतपथब्राह्मण ७/९/१/५ २. जैमिनिब्राह्मण ३/२७२ ३. आस्पैक्ट्स आफ वैष्णविज्म, पृ० १२७ : दृष्टव्य-मध्यकालीन साहित्य में
अवतारवाद, पृ० ४१९ ४. विष्णुपुराण १/४७-८ ५. ऐतरेयब्राह्मण ५/२/१० ६. महाभारत-आदिपर्व १/१८/११-१२ ७. बाल्मीकि रामायण १.४५.२९ ८. विष्णुपुराण १.९.८८
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