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११४ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन महायान में बुद्ध की अवधारणा की चर्चा के पूर्व इन दोनों की बुद्ध संबंधी अवधारणा पर विचार करेंगे। (क) सर्वास्तिवाद में बुद्ध
सर्वास्तिवाद हीनयान सम्प्रदाय का ही एक रूप है, इसमें बुद्ध को जरायुज माना गया है। सर्वास्तिवाद के ग्रन्थ दिव्यावदान में बुद्ध के रूप काय और धर्मकाय ऐसे दो भेदों का उल्लेख है। उसमें बुद्ध के रूपकाय को अनित्य माना गया है, यद्यपि उसे मृग्मयो देव-प्रतिमा के समान पूजनीय भी बताया गया है। यहाँ हम देखते हैं कि जहाँ पालि त्रिपिटक' में स्वयं बुद्ध वचन के द्वारा जिस रूपकाय को "किं ते प्रतिकायेन दिछैन" कहकर महत्त्वहीन कहा गया था और धर्म शासन या धर्मकाय को महत्त्वपूर्ण बताया गया था, वहाँ सर्वास्तिवादी बुद्ध के इस रूपकाय को अनित्य मानते हुए भी पूजनीय मानते थे। अभिधर्मकोश में, जो सर्वास्तिवादी विचारों का एक प्रमुख ग्रन्थ है, बुद्ध की एक प्रमुख विशेषता उनकी सर्वज्ञता है। उनके अनुसार प्रत्येक बुद्ध श्रावक, (अर्हत्) क्लिष्ट-सम्मोह से मुक्त होते हुए भी अक्लिष्ट सम्मोह से पूर्णतया मुक्त नहीं होते हैं, अतः वे सर्वज्ञ नहीं होते हैं । सर्वज्ञ तो केवल बुद्ध ही होते हैं। इस प्रकार सर्वास्तिवादी बुद्ध की सर्वज्ञता का प्रतिपादन करते हैं। जबकि पालि त्रिपिटक में इस सर्वज्ञता को कोई महत्त्व नहीं दिया गया, वे यह मानते हैं कि इस असाधारण ज्ञान के द्वारा बुद्ध ही सब जीवों के कल्याण को जान सकते हैं और जगत् के दुःख को दूर कर सकते हैं। सर्वास्तिवादो बुद्ध के रूपकाय को विपाकज मानते थे अर्थात् वह शाक्य मुनि के पूर्व कर्म के विपाक के रूप में उपलब्ध हुई थी इसो विपाकज काय के कारण शाक्य मुनि को रोग, क्षति आदि उत्पन्न हुए थे। सर्वास्तिवाद में बुद्ध के शरीर को अनेक लक्षणों और अनुव्यंजनों से तथा रश्मि प्रभा से युक्त बताया गया है। इस मत में बुद्ध अद्भुत शक्तिशाली और विलक्षण पुरुष हैं, जिनका देह तो भौतिक किन्तु चित्त सर्वज्ञ है। (ख) महासांधिक मत में बुद्ध
महासांधिक महायान का हो पूर्व रूप है । महासांधिक मत में बुद्ध एवं बोधिसत्व को औपपादुक माना गया है । इस प्रकार उनका मत हीनया
१. संयुत्तनिकाय (ना०) भाग २, पृ० ३४१ : . . .
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