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________________ १६५ १६८ वान् अर्थदर्शी १५७; (१५) भगवान् धर्मदर्शी १५७; (१६) भगवान् सिद्धत्थ १५८; (१७) भगवान् तिष्य १५९; (१८) भगवान् पुष्य १५९; (१९) भगवान् विपश्यी १६०; (२०) भगवान् शिखो १६१; (२१) भगवान् विश्वभू १६१; (२२) भगवान् ककुसन्ध १६२; (२३) भगवान् कोणागमन १६२; (२४) भगवान् काश्यप १६३ १५. परिनिर्वाण के बाद बुद्ध की स्थिति १६. बौद्ध धर्म में भक्ति का स्थान १७. बुद्ध और लोक कल्याण १८. बौद्ध धर्म में कृपा और पुरुषार्थ १९. अमात्मवाद और बुद्धत्व की अवधारणा चतुर्थ अध्याय : अवतार की अवधारणा १. अवतार शब्द की व्याख्या २. अवतार शब्द का सामान्य तात्पर्यः विष्णु के अवतार ३. विष्णु शब्द की व्याख्या ४. विष्णु और सूर्य ५. शिव पुराण के अनुसार विष्णु की उत्पत्ति ६. अवतार एवं उनका प्रयोजन (क) वाल्मीकि रामायण १८५; (ख) महाभारत १८६; (ग) गीता १८८; (घ) विष्णुपुराण १९० ७. अवतार की अवधारणा का विकास दश अवतारों की विशद् व्याख्या ८. अवतारों के विभिन्न प्रकार ९. अवतार की अवधारणा के सम्बन्ध में ऐनीबेसेंट के विचार १०. राधास्वामी मत में दस अवतार की अवधारणा ११. पारसियों में दस अवतार की अवधारणा १२. अवतारों की चौबीस संख्या की अवधारणा १. सनत्कुमार २१४; २. वराह २१५; ३. नारद २१५; ४. नर-नारायण २१६; १७४ १७७ १७८ १८० १८३ १९२ २०८ २११ २१२ २११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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