________________
बुद्धत्व की अवधारणा : १०७
ant सुमंगलविलासिनी में बुद्ध को तथागत कहा है ।" बुद्ध के अनुयायी उनको "भगवा" कहकर पुकारते थे, दूसरे लोग उनको गौतम नाम से ही जानते थे । अन्यत्र उन्हें यक्ष, शाक्य, ब्रह्मा एवं महामुनि " आदि नामों से भी सम्बोधित किया गया है ।
दीघनिकाय, अंगुत्तरनिकाय और विशुद्धिमग्ग में बुद्ध के निम्न विशेषण उपलब्ध होते हैं
"भगवा, अरहं सम्मासम्बुद्धो, विज्जाचरणसम्पन्नो, सुगतो, लोकविदु, अनुत्तरो पुरिस धम्मसारथि, सत्था देव मनुस्सानं, बुद्धो भगवा ।"*
अर्थात् भगवान् बुद्ध, अर्हत् सम्यक् ज्ञान सम्पन्न, विद्या एवं आचरण से युक्त, सद्गति को प्राप्त करने वाले, लोक- ज्ञाता, अनुपम, श्रेष्ठ मनुष्यों धर्म के नायक, देवता एवं मनुष्यों के शास्ता थे ।
सुमंगलविलासिनी में बुद्ध को अपरिमितवर्ण से युक्त कहा गया है. " जो उनके विशिष्ट व्यक्तित्व का परिचायक है ।
महायान ग्रन्थ सद्धर्मं पुण्डरीक में बुद्ध को स्वयंभू, विजेता, वैद्य, आत्मदीप्त, विश्व का अधिष्ठाता पाप रहित, प्रकाश देने वाला, सभी पदार्थों में उत्तम, मितभाषी एवं देवाधिदेव आदि नामों से उल्लिखित किया गया है । इन विशेषणों में विश्व का अधिष्ठाता एवं देवाधिदेव ऐसे विशेषण हैं जो "बुद्ध" को एक लोकोत्तर व्यक्तित्व वाला बना देते हैं । यहीं बुद्धत्व की अवधारणा में ईश्वरत्व का आरोपण होता है ।
"यं निम्मलेन पत्तब्बं, विमलेन सचीमता ।
नाणिना च पत्तब्बं विमुत्तेन अनुत्तरं ॥” " सोहं विजितसङ्गामो, मुत्तो मोचेमि बन्धना । नागोम्हि परमदन्तो, असेसो परिनिब्बुतो " ति ।। "
>
- अंगुत्तरनिकाय भाग ३ (८।९।५), पृ० ४२२
१. सुमंगलविलासिनी भाग १, पृ० ५९ । २. मज्झिमनिकाय भाग २ (६.२१), पृ० ६० ।
५. खुद्दक निकाय भाग १, पृ० ३१८ ।
३. सुत्तनिपात, पृ० ९१; सुत्तनिपात कमेन्टरी भाग २, पृ० ४१८ ।
Jain Education International
४. बुद्धवंश कमेन्टरी, पृ० ३८ ।
५. सुमंगलविलासनी - I -३१५
६. सद्धर्मपुण्डरीक (२२८.४,२२९.१, २९६.६)
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org