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________________ १०० : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन की अपेक्षा प्रथम स्थान दिया है ।' आचार्य कुन्दकुन्द ने भी दर्शनप्राभृत में 'दंसणमूलो धम्मो" अर्थात् धर्म को दर्शन प्रधान कहा है।' लेकिन कुछ ऐसे भी सन्दर्भ मिलते हैं जिनमें ज्ञान को प्राथमिक माना गया है। उत्तराध्ययन में मोक्षमार्ग को विवेचना के प्रसंग में ज्ञान को प्रथम स्थान दिया गया है । ज्ञान और दर्शन में से साधनात्मक जीवन की दृष्टि से किसे प्राथमिकता दें, इसका निर्णय करना सहज नहीं है। इस विवाद के मुख्य मूल कारण यह हैं कि श्रद्धावादी लोग सम्यक् दर्शन की और ज्ञानवादी लोग सम्यक् ज्ञान की प्राथमिकता को स्वीकार करते हैं, लेकिन इस विवाद में एकपक्षीय निर्णय लेना उचित नहीं होगा, बल्कि समन्वयवादी दृष्टिकोण ही सुसंगत होगा । नवतत्त्वप्रकरण में ऐसा ही समन्वयवादो दृष्टिकोण अपनाया गया है, जहाँ दोनों को एक दूसरे का पूर्वापर बताया है, कहा गया है कि जो जोवादि नव पदार्थों को यथार्थरूप से जानता है उसे सम्यक्त्व होता है। इस प्रकार ज्ञान को दर्शन के पूर्व बताया गया है लेकिन अगली ही पंक्ति से ज्ञानाभाव में केवल श्रद्धा से ही सम्यक्त्व की प्राप्ति मान ली गई है और कहा गया है कि जो वस्तु तत्त्व को स्वतः नहीं जानता हुआ भी उसके प्रति भाव से श्रद्धा करता है उसे सम्यक्त्व प्राप्त हो जाता है। डॉ० सागरमल जैन ने अपने ग्रन्थ 'जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन'५ में ज्ञान एवं दर्शन में से किसे प्रथम स्थान दें, इसका तार्किक विवेचन किया है-“दर्शन शब्द के दो अर्थ हैं१. यथार्थ दृष्टिकोण, २. श्रद्धा । यदि हम दर्शन का यथार्थ दृष्टिकोणपरक अर्थ लेते हैं तो हमें साधनामार्ग की दृष्टि से उसे प्रथम स्थान देना चाहिए। क्योंकि यदि व्यक्ति का दृष्टिकोण ही मिथ्या है, अयथार्थ है, तो न तो उसका ज्ञान सम्यक् (यथार्थ) होगा और न चारित्र ही। यथार्थ दृष्टि १. तत्त्वार्थसूत्र, १/१ २. दर्शनपाहुड २ ३. नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा। एस मग्गो त्ति पन्नत्तो, जिणेहि वरदंसिहि ॥ उत्तराध्ययनसूत्र २८/२ ४. नवतत्त्वप्रकरण १, उद्धृत-जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुल नात्मक अध्ययन, भाग २, पृ० २४ ५. जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग २, पृ० २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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