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तीर्थंकर की अवधारणा : ८९
समस्त अवधारणाओं के सन्दर्भ में डॉ. सागरमल जैन ने अपने ग्रन्थ अर्हत् पार्श्व और उनकी परम्परा में विस्तार से विचार किया है, वे लिखते हैं कि “सत् का उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक होना, पंचास्तिकाय की अवधारणा, अष्ट प्रकार की कर्म ग्रन्थियाँ, शुभाशुभ कर्मों के शुभाशुभ विपाक, कर्म विपाक के कारण चारों गतियों में परिभ्रमण तथा सामायिक, संवर, प्रत्याख्यान, निर्जरा, व्युत्सर्ग आदि सम्बन्धी अवधारणायें पाश्र्वापत्य परम्परा में स्पष्ट रूप से उपस्थित थी।" २४. वर्धमान महावीर
महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर माने जाते हैं। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला कहा जाता है, इनका जन्मस्थान कुण्डपुर ग्राम बताया गया है । महावीर के जीवनवृत्त को लेकर जैनों की श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराओं में अनेक बातों में मतभेद हैं । श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार महावीर का जीव सर्वप्रथम ब्राह्मणी देवानन्दा के गर्भ में आया था और उसके पश्चात् इन्द्र के द्वारा उनका गर्भापहरण कराकर उन्हें सिद्धार्थ को पत्नी त्रिशला की कुक्षि में प्रतिस्थापित किया गया। दिगम्बर परम्परा इस कल्पना को सत्य नहीं मानती है । महावोर के विवाह प्रसंग को लेकर भी श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराओं में मतभेद हैं। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार महावीर का विवाह हुआ था । उनको पुत्री प्रियदर्शना थी, जिसका विवाह जामालि से हुआ था। __दोनों परम्पराओं के अनुसार उनके शरीर की ऊँचाई सात हाथ तथा वर्ण स्वर्ण के समान माना गया है। दोनों परंपराएँ इस बात में भी सहमत हैं कि महावीर ने तीस वर्ष की आयु में संन्यास ग्रहण किया था, यद्यपि उनके संन्यास ग्रहण करते समय उनके माता-पिता जीवित थे या मृत्यु का प्राप्त हो गए थे, इस बात को लेकर पुनः मतभेद है, श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार महावीर ने गर्भस्थकाल में की गई अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अपने माता-पिता के स्वर्गवास के पश्चात् ही अपने भाई नन्दी से १. इसिभासियाई अध्याय ३१ । २. समवायांग, मा० २४, १५७ । ३. कल्पसूत्र २१ । ४. वही, २१-२६ । ५. समवायांग गा० ७, आवश्यकनियुक्ति, ३७७ ।
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