SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ पूर्वक तप करने से उन्होंने स्त्री वेद का बंध किया । इसी प्रकार बीस स्थानों की आराधना करने से तोर्थंकर नाम गोत्र का भी उपार्जन किया ।" तीर्थंकर नाम गोत्र के लिये निम्न बीस प्रकार की आराधना आवश्यक मानी गई है : १- २. अरिहंत तथा सिद्ध की भक्ति, ३. प्रवचन, ४. गुरु, ५. स्थविर, ६. बहुश्रुत, ७, तपस्वीमुनि की भक्ति सेवा करना, ८. निरन्तर विवेक में उपयोग रखना ९. निर्दोष सम्यक्त्व का पालन करना, १०. गुणवानों का विनय करना, ११. विधिपूर्वक षडावश्यक का पालन करना, १२. शीलव्रत का निर्दोष पालन करना, १३. वैराग्यभाव की वृद्धि करना, १४. शक्तिपूर्वक तप और त्याग करना, १५ त्यागी मुनियों को उचित दान देना, १६, वैयावृत्य करना, १७. समाधिस्थ गुरु को साता पहुँचाना, १८. वीतराग के वचनों पर श्रद्धा करना, १९. सुपात्र को दान करना, और २०. जिन शासन की प्रभावना करना लघुसिंह क्रीड़ित तथा महासिंह क्रीड़ित आदि घोर तपस्या तथा वर्षों तक संयम का पालन करते हुए उक्त सातों मुनियों ने अनशनपूर्वक समाधिमरण लिया । यही महाबल का जीव अनुत्तर विमान से च्युत होकर मिथिला के महाराजा कुम्भ की महारानी प्रभावती की कुक्षि में अवतरित हुआ । माता प्रभावती ने शुभ योग में पुत्री को जन्म दिया जिसका नाम मल्लि रखा गया । कालान्तर में मल्लिकुमारी बाल्यकाल पूर्ण कर युवावस्था में प्रविष्ट हुई। उसके रूप- लावण्य और गुणादि की उत्कृष्टता सर्वत्र फैलने लगी । मल्लिकुमारी ने अवधि ज्ञान से उन छः मित्रों का जोवन देखा और उनके जीवन के कल्याण के लिये उन्हें भी प्रतिबोध देने का विचार किया | इसकी विस्तृत चर्चा ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र में निम्न रूपों में वर्णित है । मल्लिकुमारी के रूप लावण्य और गुणादि की उत्कृष्टता को चर्चा तत्कालीन छः गणराजाओं तक पहुँची । मल्लिकुमारी ने अपने पूर्व जन्म के मित्रों तथा इस जन्म के गणराजाओं का मोहभाव दूर करने १. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र - पृ० २४१ २. आ० हस्तीमलजी - जैन धर्म का मौलिक इतिहास - पृ० १२६ (क) आवश्यकचूणि 'ऋषभदेव' रतलाम केशरीमल पृ० ८९ भाग - १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy