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प्रागैतिहासिक काल की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएँ : ५
यहाँ मूलभूत सिद्धान्त यह प्रतीत होता है कि विवाह संस्कार के साथ गृहस्थ जीवन का भी सूत्रपात हुआ और एक नये युग का प्रारंभ हुआ । ब्राह्मी' :
माता सुमंगला तथा पिता ऋषभदेव की पुत्री ब्राह्मी ने नई सामाजिक व्यवस्था के अनुसार बुद्धि तथा गुणों की प्रगति करने वाली चौंसठ कलाओं की शिक्षा ग्रहण की। ऋषभदेव ने तत्कालीन समाज को सुसंस्कृत बनाने के लिए पुरुषों को बहत्तर (७२) और महिलाओं को चौंसठ (६४) कलाओं की शिक्षा प्रदान की थी। पिता ऋषभदेव ने पुत्री ब्राह्मी को अट्ठारह लिपियों का अध्ययन भी कराया था ।
ऋषभदेव ने यौगलिक प्रथा को समाप्त कर विवाह प्रणाली का शुभारम्भ किया, तथा उसे पुष्ट और प्रामाणिक बनाने के लिए भरत की सहजात ब्राह्मी का विवाह बाहुबली से किया । *
यहाँ पर यह शंका उत्पन्न होती है कि ब्राह्मी और सुन्दरी को बाल ब्रह्मचारिणी माना गया है, फिर इनको विवाहित कैसे उल्लेखित किया गया ?" संभव है उस समय की लोक व्यवस्थानुसार पहले दोनों का सम्बन्ध घोषित किया गया हो और फिर भोग-विरक्ति के कारण दोनों ने तीर्थंकर ऋषभदेव के पास प्रव्रज्या ग्रहण कर ली हो ।
वास्तविकता कुछ भी रही हो पर इतना निश्चित है कि तीर्थंकर ऋषभदेव के केवलज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् उनके प्रथम प्रवचन से ही प्रतिबोधित होकर ब्राह्मी ने दीक्षा ग्रहण की थी । ऋषभदेव के धार्मिक
१. देखिए - विशेषावश्यकभाष्य १६१२-३ आवश्यकचूर्ण १, पृ० १५२, कल्पसूत्रवृत्ति पृ० २३१, आवश्यक पृ० २८, स्थानांग ४३५
४४४, ( चौंसठ कलाओं के लिए
२. कल्पसूत्र सु० टीका सूत्र - २११ - १० परिशिष्ट देखें) पृ० २९४
३. (क) आवश्यक नियुक्ति गाथा २१२ (ख) विशेषावश्यकभाष्य वृत्ति, १२२ ४. आवश्यक मलयवृत्ति - पृ० २००
५. आचार्य जिनसेन ने ब्राह्मी के विवाह का वर्णन नहीं किया है । प्रज्ञाचक्षु
पं० सुखलालजी भी उन्हें अविवाहित ही मानते हैं ।
देवेन्द्र मुनि - ऋषभदेव एक परिशीलन-पृ० ७४
६. महापुराण २४-१७७ (क) त्रिषष्टिशलाकापुरुष प. १, स. ३
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