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३१४ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियों एवं महिलाएं
९. साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी-आपका मूल निवास स्थान लाडनूं था। वि० सं० १९९८ में कलकत्ता में आपका जन्म हुआ। आपने वि० सं० २०१७ को आषाढ़ी पूर्णिमा को केलवा में आचार्य तुलसी से दीक्षा ग्रहण की। साध्वीप्रमुखा का पद वि० सं० २०२८ में गंगाशहर में प्राप्त हुआ।
धार्मिक परिवार में जन्म होने से बचपन से ही आपको धर्म के संस्कार प्राप्त हए । आपके मन में वैराग्य के अंकुर प्रस्फुटित हए, पर संकोचशीला बालिका होने के कारण सबके सामने अपने विचार प्रकट नहीं किये।
वैराग्य भावना बलवतो होती गई। आखिर सं० २०१३ भाद्रपद शुक्ला त्रयोदशी के दिन आपको श्री पारमार्थिक शिक्षण संस्था में प्रविष्ट किया गया। आपका प्रत्येक कार्य शालीनता व विवेकपुरस्सर होता । साधना की भूमिका में निष्णात पाकर आचार्यश्री तुलसी ने आपकी दोक्षा की स्वीकृति प्रदान की। फलस्वरूप तेरापंथ द्विशताब्दी समारोह के ऐतिहासिक स्थल केलवा में आपकी दीक्षा संम्पन्न हुई। दीक्षा के पश्चात् आपकी स्फूर्तप्रज्ञा और अधिक उन्मिषित हुई। एकान्तप्रियता, गम्भीरता, स्वल्पभाषण, निष्ठापूर्वक कार्य-संचालन आपकी विरल विशेषताएँ हैं। अप्रमत्तता आपका विशेष गुण है ।पश्चिम रात्रि में उठकर सहस्र पद्यों का स्वाध्याय आपका स्वभाव बन गया है।
आज भी आपको 'दसवेआलिय' नाममाला, न्यायकणिका, नीतिशतकम्, जैन सिद्धान्त दीपिका, शान्तसुधारस, सिन्दूर प्रकर, 'षड्दर्शन' आदि अनेक ग्रन्थ सम्पूर्ण रूप से कण्ठाग्र हैं।
न्याय सिद्धान्त, दर्शन और व्याकरण का आपने गहन अध्ययन किया है। हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत भाषा पर पूर्ण अधिकार है। अंग्रेजी भाषा में भी आपकी अच्छी गति है। आपका अध्ययन आचार्य प्रवर की पावन. सन्निधि व साध्वी श्री मंजुलाजी की देख-रेख में हुआ। __ सब दृष्टियों से पूर्ण योग्य समझकर गंगाशहर मर्यादा महोत्सव के. अवसर पर सं० २०२८ की माघ कृष्णा त्रयोदशी को युगप्रधान आचार्य प्रवर ने साध्वीप्रमुखा के रूप में आपका मनोनयन किया । उस समय आप से ४१७ साध्वियाँ रत्नाधिक थीं। आज भी लगभग ४०० साध्वियाँ दीक्षा-- पर्याय में ज्येष्ठ हैं। आपके नम्र व्यवहार को देखकर सब आश्चर्यचकित हैं। आप एक कुशल अनुशासिका, विज्ञ व्यस्थापिका व सफल संचालिका होने के साथ-साथ सफल संपादिका व लेखिका भी हैं।
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