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तेरापंथ की अग्रणी साध्वियां : ३०७
तप करके आपने साधना पक्ष को परखा । दीक्षा ग्रहण की भावना उत्कृष्ट हुई । पारिवारिक जनों के बीच अपनी भावना रखी । स्वीकृति न मिलने पर सरदारांसती ने अनेक प्रयास किए, सब कसौटियों पर खरी उतरने के पश्चात् दोनों परिवारों से अनुज्ञा प्राप्त हुई । दीक्षा श्रीमज्जयाचार्य के हाथों सम्पन्न हुई । लुंचन अपने हाथों से किया । प्रथम बार आचार्यश्री रामचन्दजी के दर्शन किए तब औपचारिक रूप से अग्रगण्या बना दिया । दीक्षा के १३ वर्ष बाद आपको साध्वीप्रमुखा का पद मिला । जयाचार्य को आपकी योग्यता व विवेक पर विश्वास था । प्रखर बुद्धि के कारण एक दिन में २०० पद्य कंठस्थ कर लेती थीं । सहस्त्रों पद कंठस्थ थे । उन 'दिनों साधु-साध्वियों का हस्तलिखित प्रतियों पर अपना अधिकार था । महासती सरदारांजी ने एक उपाय ढूंढ निकाला । सारी पुस्तकें सरदारसती को अर्पित की गईं। सरदारसती ने सारी पुस्तकें जयाचार्य को भेंट कर दीं। जयाचार्य ने आवश्यकतानुसार सबका संघ में वितरण कर दिया । विवेक और बुद्धि कौशल के आधार पर ही उन्होंने साध्वियों के हृदय परिवर्तन कर अनेक ग्रुप तैयार किये, जिन्हें तेरापंथ की भाषा में संघाड़ा कहते हैं । जयाचार्य का आदेश पा आपने एक रात्रि में ५२ साध्वियों के १० संघाटक तैयार कर श्रीमज्जयाचार्य से निवेदन किया । आचार्यश्री आपकी कार्य-कुशलता व तत्परता पर बहुत प्रसन्न हुए । आहार के समविभाग की परम्परा का श्रेय भी सरदारसती को ही है । साधु जीवन में विविध तपस्याएँ कीं, अनेक साध्वियों को प्रोत्साहित किया। अन्त में वि० सं० १९२७, पौष कृष्णा ८ को आजीवन अनशन ( पाँच प्रहर के अनशन ) में आपका स्वर्गवास हुआ ।
३. महासती गुलाबांजी - हृदय में कोमलता, भाषा की मधुरता और आँखों की आर्द्रता – ये नारी के सहज गुण हैं । साध्वी श्री गुलाबांजी में इनके साथ-साथ व्यक्तित्व का सुयोग भी था ।
जिसका जीवन विवेक रूपी सौन्दर्य से अलंकृत है । वही वास्तव में सुन्दर है, महासती गुलाबांजी में बाह्य और आन्तरिक दोनों प्रकार के सौन्दर्य का सहज मेल था । शरीर की कोमलता, अवयवों की सुन्दर संघटना, गौरवर्ण - ऐसा था उनका बाह्य व्यक्तित्व । मिलनसारिता, विद्वत्ता, सौहार्द्र, वात्सल्य और निश्छलभाव - यह था आपका आन्तरिक व्यक्तित्व ।
आपकी दीक्षा जयाचार्य के करकमलों से हुई । महासतो सरदारांजी से संस्कृत व्याकरण तथा काव्य का अध्ययन किया । मेधावी तीव्रता, और ग्रहण-पटुता से कुछ समय में ही विदुषी बन गयी ।
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