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________________ स्थानकवासी पंजाबी सम्प्रदाय की प्रमुख साध्वियां : ३०३ अलवर गई तब गेंदाबाई के साथ पन्नावर भी वहाँ गई और माता'पिता की स्वीकृति लेकर साध्वी जी से दीक्षा लेने का निवेदन किया। दीक्षा-माता-पिता और प्रमुख गुरुजनों की प्रार्थना पर महासती ने उन्हें ज्ञानाभ्यास शुरू कराया। प्रतिक्रमण सूत्र, नवतत्व पदार्थ, दशवैका'लिक, उत्तराध्ययन आदि अनेक ग्रन्थ कंठस्थ कराये । महासती पार्वती का सं० १९५८ का चातुर्मास रोहतक में निश्चित हुआ और चातुर्मास से पूर्व आषाढ़ सुदी १०सं० १९५८ को दीक्षा मुहूर्त निश्चित हुआ । बड़ी तैयारी और धूमधाम के साथ समारोह सम्पन्न हुआ और पन्नाकुँवर महासती पन्नादेवी के रूप में अवतरित हुई । आपने अल्प समय में कठोर स्वाध्याय करके आगमों का ज्ञान प्राप्त कर लिया । सं० १९५९ में कांधला चातुर्मास के अवसर पर इन्होंने अपनी विद्या और प्रवचन पटुता से लोगों को चकित कर दिया। आपने स्वयं तो अध्ययन किया ही, साथ ही दूसरों को भी अध्ययन की प्रेरणा दी और कराया। आप सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति थीं । सेवा को दिव्यज्योति आपके अन्तस्थल में निरन्तर जलती रहती थी । आप अपने गुरुणीजी की सेवा में प्राणप्रण से लगी रहती थीं। सं० १९९६ में जब महासती पार्वती जी म० काफी अस्वस्थ हो गई थीं उस समय आपने उनकी दिन-रात बड़ी लगन से सेवा की और उन्हें स्वास्थलाभ कराया। उसी समय रावलपिंडी के श्री संघ के आग्रह पर इन्हें वहाँ जाना पड़ा। वे जालन्धर, कपूरथला, पटियाला, अमृतसर, लाहौर होती गुजरानवाला पहुँची तभी इन्हें महासती पार्वती के स्वर्गवास का दुःखद समाचार मिला। इस समय इन्हें वही मार्मिक अनुभूति हुई जैसी गौतम गणधर को हुई होगी। सं० २००१ में आपने अपनी गुरुबहन हीरा देवी की देहली में रहकर खूब सेवा को। आपने अपनी सहधर्मिणी एवं शिष्याओं को भी सेवा की। आपकी सेवा परायणता अन्यों के लिए आदर्श है। शिष्या परिवार-१. आपकी चार प्रमुख शिष्यायें हैं :-श्री जयन्ती जी म० २. श्री रामकली जी म० स०, ३. श्री हर्षावती जी म० ४. श्री गणवती जी म०। श्री जयन्ती जी म० की शिष्याओं में प्रजावती और विजेन्द्रकुमारी जी उल्लेखनीय हैं। श्री प्रजावती जी म० सा० की शिष्याओं में श्री मृगावती जी म० और श्री प्रमोद कुमारी म०, कविता कुमारी म० इस समय जैन विद्या और संयम के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण साध्वियाँ हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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