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२८४ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं श्री जयकुँवरजी से दीक्षा ग्रहण की और न्याय, व्याकरण तथा साहित्य का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया । साध्वी श्री दुर्गाकुवरजी
ये कुसुंबा ( नासिक ) निवासी श्रोमान् बादरमलजी धाड़ीवाल की धर्मपत्नी एवं श्रीमती गंगुबाई की पुत्री थीं। चौदह वर्ष की अवस्था में आपका विवाह पीपलपाड़ा (नासिक ) निवासी श्री उदयराजजी सोलंकी के साथ हआ । मात्र बीस दिन में ही विधवा हो गई। सं० १९९८ माघ शुक्ल १३ ( त्रयोदशी ) शुक्रवार के दिन निफाड ( नासिक ) में ५१ वर्ष की अवस्था में साध्वी श्री जयकँवरजी से दीक्षा ग्रहण की। साध्वी श्री गुमनाजी
इनका जन्म प्रतापगढ़ स्टेट के कोटड़ी नामक ग्राम में हुआ था। इनके माता-पिता का नाम क्रमशः झमाबाई और नाहरमलजी था। इन्होंने २१ वर्ष की अवस्था में जावरा शहर में साध्वी श्री दयाकँवरजी से दीक्षा ग्रहण की थी। इनका स्वर्गवास मालवा प्रान्त में हुआ। इन्होंने सं० १९३९ में अमरावती में श्री सिरेकुँवरजी को दीक्षित किया। साध्वी श्री सिरेकुवरजी ___ आप नागपुर के श्री नवलमलजी को धर्मपत्नी श्रीमती विनयकुँवर बाई को पुत्री थीं। इनका विवाह अमरावती निवासी श्री नाहरजी के साथ हुआ। संवत् १९३९ में साध्वी श्री गमनाजी से दीक्षा ग्रहण की और शास्त्रीय ज्ञान अजित किया। इनका विचरण स्थल मालव देश था। संवत् १९५८ मार्गशीर्ष ३ ( तीज ) को स्वर्गवास हो गया।
इनकी नौ शिष्याएँ हुई । जिनमें छह के नाम उपलब्ध हैं।
(१) श्री चुनाजी, (२) श्री गलाबजी, (३) श्री गंगाजी (४) श्री चम्पाजी (५) श्री घोसाजी और ( ६ ) श्री रतन कुँवर । इनमें श्री रतन कुंवरजी की परम्परा चली। साध्वी श्री रतनकुवरजी की परम्परा
इनका जन्म सं० १९४९ में जोधपुर स्टेट के मोगरा ग्राम में हुआ था। इनके पिता श्री गणेशरामजी राजपूत थे और माता श्री रंभाबाई थीं। ये आठ वर्ष की उम्र में सं० १९५७ फाल्गुन कृष्ण पंचमी के दिन साध्वी श्री सिरेकँवरजी की शिष्या हईं । संस्कृत और प्राकृत के अध्ययन के साथहिन्दी, ऊर्दू भाषा का भी विशेष अध्ययन किया ।
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