SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 344
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थानकवासी आचार्य अमरसिंहजी की परम्परा की जैन साध्वियाँ : २७७ तीन शिष्याएं हैं- ( १ ) चन्द्रावतीजी, (२) प्रियदर्शनाजी और ( ३ ). किरणप्रभाजी | तृतीय सुशिष्या महासती प्रभावतीजी की चार शिष्याएँ. हैं - ( १ ) श्रीमतीजी, (२) प्रेमकुंवरजी, (३) चन्द्रकुँवरजी तथा ( ४ ) हर्ष प्रभाजी | इस प्रकार प्रस्तुत परम्परा वर्तमान में चल रही है । परम विदुषी सद्दाजी की एक शिष्या फत्तूजी हुईं । फत्तूजी का मुख्य विहार क्षेत्र मारवाड़ रहा । उनकी अनेक शिष्याएँ हुईं जिनमें आनन्द-कुँवरजी एक तेजस्वी साध्वी थीं । आनन्दकुँवर ने कब दीक्षा ली यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। उनका स्वर्गवास सं० १९८१ में जोधपुर में संथारा पूर्वक हुआ । आपकी प्रमुख शिष्याएँ राजाजी और नेनूजी थीं । राजाजी का स्वर्गवास सं० १९७८ में हुआ । महासती राजाजी की एक शिष्या रूपजी हुई। आनन्दकंवरजीकी एक शिष्या परतापाजी हुई, जिनका वि० सं० १९८३ में स्वर्गवास हुआ । फूलकुँवरजी भी आनन्दकुँवर की शिष्या थीं। फूलकुंवरजीकी शिष्या झमकूजी थीं जिन्होंने अपनी पुत्री कस्तूरीजीके साथ दीक्षा ग्रहण की थी । कस्तूरीजीकी. एक शिष्या गवराजी थीं, इनका स्वर्गवास जोधपुर में हुआ । महासती आनन्दकुँवरजी की बभूताजी, पन्नाजी, धापूजी और किसनाजी आदि अनेक शिष्याएँ थीं । किसनाजी की शिष्या हरकूजी थीं । हरकूजी की समदाजी और समदाजी की पानाजी शिष्या थीं । आपका ( पानाजी ) जन्म जालौर में हुआ, पाणिग्रहण भी जालौर में हुआ । गढ़सिवाना में दीक्षा ग्रहण कीं और वर्तमान में जालौर में विराजित हैं । इस समय महासती आनन्दकुँवरजी की वर्तमान परम्परा में केवल एक साध्वीजी विद्यमान हैं । महासती फत्तूजी की शिष्या - परम्परा में पन्नाजी हुईं, उनकी शिष्या जसाजी हुई, उनकी शिष्या सोनाजी हुई, उनकी भी शिष्याएँ हुईं किन्तु नाम स्मरण नहीं है । महासती जसाजी की नैनूजी एक प्रतिभासम्पन्न शिष्या थीं। उनकी अनेक शिष्याएँ हुईं । महासती फत्तूजी के शिष्या - परिवार में चम्पाजी एक तेजस्वी साध्वी थीं, उनकी ऊदाजी, बायाजी आदि अनेक शिष्याएँ हुईं, वर्तमान में उनकी शिष्या परम्परा में कोई नहीं है । महासती फत्तूजी की शिष्या - परम्परा में दीपाजी, बल्लभकुँवरजी आदि अनेक विदुषी एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy