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________________ स्थानकवासी आचार्य अमरसिंहजी की परम्परा की जैन साध्वियाँ * - उपाचार्य देवेन्द्रमुनि जी साध्वीश्री भागाजी भागाजी ने स्थानकवासी आचार्यश्री अमरसिंह जी के समुदाय में किसी साध्वी के पास आर्हती दीक्षा ग्रहण की थी । इनके श्रमणी - जीवन का नाम महासती भागाजी था । इनके माता-पिता तथा सांसारिक नाम आदि के विषय में कोई जानकारी नहीं मिलती । इनके द्वारा लिखे हुए अनेकों शास्त्र, रास तथा अन्य ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ श्री अमर जैन ज्ञान भण्डार, जोधपुर में संग्रहीत हैं । लिपि उतनी सुन्दर तो नहीं है, पर प्रायः शुद्ध है । आचार्यश्री अमरसिंह के नेतृत्व में पंचेवर ग्राम में जो सन्त सम्मेलन हुआ था उसमें उन्होंने भी भाग लिया था, और जो प्रस्ताव पारित हुए थे उस पर उनके हस्ताक्षर भी हैं । भागाजी का विहार-क्षेत्र दिल्ली, पंजाब, जयपुर, जोधपुर, मेड़ता और उदयपुर रहा है - ऐसा प्रशस्तियों के आधार से ज्ञात होता है । इनकी अनेक विदुषी शिष्यायें थीं। उनमें वोराजी प्रमुख थीं । वीराजी की जन्मस्थली आदि के सम्बन्ध में सामग्री प्राप्त नहीं है । साध्वीश्री सद्दाजी सद्दाजी वीराजी की प्रमुख शिष्या थीं। इनका जन्म राजस्थान के सांभर ग्राम में वि० सं० १९५७ में हुआ था । सद्दाजी की माता का नाम पाटनदे तथा पिता का नाम पीथाजीमोदी था । इनके ज्येष्ठ भाई मालचन्द और बालचन्द थे । जोधपुर के तत्कालीन महाराजा अभयसिंह के मनोनीत अधिकारी सुमेरसिंह मेहता सद्दाजी के रूपगुण से अत्यधिक प्रभावित थे । बाद में सद्दाजी का पाणिग्रहण सुमेरसिंह के साथ सम्पन्न हुआ । युवावस्था में पति की आकस्मिक मृत्यु से सद्दाजी का मन सांसारिकता से परे वैराग्य की ओर उन्मुख हुआ अन्ततः वे साध्वी वीराजी के पास दीक्षित * यह विवरण उपाचार्य देवेन्द्रमुनिजी के लेख का संक्षिप्तिकरण है, जो पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ में छपा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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