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________________ खरतरगच्छीय साध्वी परम्परा और समकालीन साध्विय : २४५ वि० सं० १३४७ मार्गशीर्ष सुदी ६ को पालनपुर में आपने साधु-साध्वियों को बड़ी दीक्षा प्रदान की । वि० सं० १३४८ चैत्र वदी ६ को बीजापुर में मुक्तिचन्द्रिका तथा इसी वर्ष वैशाख सुदी ६ को पालनपुर में अमृतश्री को साध्वी दीक्षा प्रदान की गयी । २ वि० सं० १३५१ माघ वदी ५ को पालनपुर में ही हेमलता को साध्वी दीक्षा दी गयी । वि० सं० १३५४ जेष्ठ वदी १० को जावालिपुर में आचार्यश्री ने जयसुन्दरी को दीक्षा देकर श्रमणीसंघ में सम्मिलित किया । ४ वि० सं० १३६६ ज्येष्ठ वदी १२ को आचार्य जिनचन्द्रसूरि शत्रुञ्जय, गिरनार आदि तीर्थों की यात्रा पर निकले। इस यात्रा में आपके साथ प्रवर्तिनी रत्नश्री गणिनी आदि ५ साध्वियाँ तथा कुछ मुनि भी थे ।" तीर्थयात्रा पूर्ण कर आप भी मपल्ली पधारे जहाँ दृढधर्मा और व्रतधर्मा को दो अन्य व्यक्तियों के साथ क्षुल्लक दीक्षा प्रदान की। इसी अवसर पर गणिनी प्रियदर्शना को प्रवर्तिनी पद तथा गणिनी रत्नमंजरी को महत्तरा पद प्रदान किया । वि० सं० १३६९ मार्गशीर्ष बदी ६ को आपने पाटण में गणिनी केवलप्रभा को प्रवर्तिनी पद प्रदान किया । वि० सं० १३७१ फाल्गुन सुदी ११ को भीमपल्ली में प्रियधर्मा, यशोलक्ष्मी और धर्मलक्ष्मी को भागवती दीक्षा प्रदान की गयी ।" इसी वर्ष ज्येष्ठ बदी १० को जावालिपुर में पुष्पलक्ष्मी, ज्ञानलक्ष्मी, कनकलक्ष्मी और मतिलक्ष्मी ने प्रव्रज्या ली । " । प्राकृत भाषामय अंजनासुन्दरीचरित ( रचनाकाल वि० सं० १४०७ ) की रचयिता और प्राकृत भाषा की एकमात्र लेखिका साध्वी गुणसमृद्धि महत्तरा आपकी शिष्या थीं । " १. खरतरगच्छ बृहद्गुर्वावली पृ०६० २. वही पृ० ६० ३. वही पृ० ६१ ४. वही पृ० ६२ ५. वही पृ० ६२ ६. वही पृ० ६३ ८. वही पृ० ६४ १०. वही, पृ० ६४ विक्कमचउदसहसतुत्तरं वरिसे । कियमंजणसुन्दरीचरियं ॥ ५०३ ॥ ७. वही पृ० ६४. ९. वही पृ० ६४ ११. सिरिजेसलमेरपुरे वीरजिणजम्मदिवसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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