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२४४ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं आचार्यश्री ने ज्येष्ठ वदी ७ को भगवान आदिनाथ की प्रतिमा के समक्ष पुष्पमाला, यशोमाला, धर्ममाला और लक्ष्मीमाला को साध्वी दीक्षा प्रदान की।
वि० सं० १३३४ मार्गशीर्ष सुदी १२ को जालौर में गणिनी रत्नश्री को आचार्य जिनप्रबोधसूरि ने प्रतिनी पद प्रदान किया ।२ वि० सं० १३४० ज्येष्ठ वदी ४ को जावालिपुर में ही आपने कुमुदलक्ष्मी और भुवनलक्ष्मी को दीक्षा प्रदान की। अगले दिन अर्थात् ज्येष्ठ वदो ५ को आपने साध्वी चन्दनश्री को महत्तरा पद प्रदान किया ।
वि० सं० १३४१ ज्येष्ठ सुदी ४ को आचार्यश्री के वरदहस्त से जैसलमेर में पुण्यसुन्दरी, रत्नसुन्दरी, भुवनसुन्दरी और हर्षसुन्दरी को साध्वी दीक्षा प्राप्त हुई। __ इसी वर्ष फाल्गुन वदी ११ को आचार्यश्री ने जैसलमेर में ही धर्मप्रभा और हेमप्रभा को उनकी अल्पायु के कारण साध्वी दीक्षा न देकर क्षुल्लक दीक्षा दी।५ वि० सं० १३४१ वैशाख सुदी ३ अक्षय तृतीया को आपने जिनचन्द्रसूरि को अपना पट्टधर घोषित कर वैशाख सुदी ११ को देवलोक प्रयाण किया।
आचार्य जिनचन्द्रमूरि (द्वितीय) ने भी अनेक मुमुक्षुमहिलाओं को साध्वी दीक्षा प्रदान कर खरतरगच्छीय श्रमणसंघ के गौरव की वृद्धि की।
आपके वरदहस्त से वि० सं० १३४२ वैशाख सुदी १० को जावालिपुर में जयमंजरी, रत्नमंजरी और शालमंजरी को क्षुल्लक दीक्षा तथा गणिनो बद्धिसमद्धि को प्रवर्तिनी पद प्रदान किया गया। इस दीक्षा महोत्सव में प्रीतिचन्द्र और सुखकीर्ति को भी क्षुल्लक दीक्षा दी गयी।
वि० सं० १३४५ आषाढ़ सुदी ३ को जावालिपुर में ही चारित्रलक्ष्मी को साध्वी दीक्षा दी गयी। इसी नगरी में वि० सं० १३४६ फाल्गन सदी ८ को रत्नश्री एवं वि० सं० १३४७ ज्येष्ठ वदी ७ को मुक्तिलक्ष्मी और युक्ति-लक्ष्मी को आचार्यश्री के वरदहस्त से साध्वो दोक्षा प्राप्त हुई।१०
१. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावलो पृ० ५५ ३. वही पृ० ५८ ५. वही पृ० ५८ ७. वही पृ० ५९ ९. वही पृ० ५९
२. वही पृ० ५६ ४. वही पृ० ५८ ६. वही पृ० ५८
८. वही पृ० ५९ १०. वही पृ० ५९
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