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________________ खरतरगच्छीय साध्वी परम्परा और समकालीन साध्वियाँ : २४१ साध्वी रत्नश्री को दीक्षित किया । यही साध्वी रत्नश्री आगे चलकर गच्छ प्रवर्तिनी बनीं। वि० सं० १२६० में आचार्यश्री ने लवणखेड में आर्या आनन्दश्री को महत्तरा पद प्रदान किया। इसी नगरी में वि सं० १२६३ में विवेकश्री, मंगलमति, कल्याणश्री और जिनश्री ने उनके वरदहस्त से भागवती दीक्षा ली और साध्वी धर्मदेवी ने प्रवर्तिनी पद प्राप्त किया। लवणखेड़ में ही वि० सं १२६५ में आसमति और सुन्दरमति तथा वि० सं० १२६६ में विक्रमपुर में ज्ञानश्री ने उनसे साध्वी दीक्षा ली।४ वि० सं० १२६९ में चन्द्रश्री और केवलश्री को साध्वी-दीक्षा दी गयी और साध्वी धर्मदेवी को महत्तरा पद प्रदान कर उन्हें प्रभावती के नाम से प्रसिद्ध किया गया। वि० सं० १२७५ में आचार्यश्री ने भुवनश्री, जगमति और मंगलश्री को भागवती दीक्षा देकर श्रमणीसंघ में प्रविष्ट कराया। इस प्रकार स्पष्ट है कि आचार्य जिनपतिसूरि के समय खरतरगच्छीय श्रमणीसंघ में पर्याप्त साध्वियाँ थीं। आचार्य जिनपतिसूरि के स्वर्गारोहण के पश्चात् जिनेश्वरसूरि (द्वितीय) खरतरगच्छ के प्रधान आचार्य बने ।' इनके समय में भी अनेक महिलाएं साध्वीसंघ में प्रविष्ट हुईं। इन्होंने वि० सं० १२७९ में श्रीमालपुर में ज्येष्ठ सुदी १२ को चारित्रमाला, ज्ञानमाला और सत्यमाला को साध्वी दीक्षा दी। वि० सं० १२७९ माघ सुदी पंचमी को आपने विवेकश्री गणिनी, शीलमाला गणिनी और विनयमाला गणिनी को संयम प्रदान किया ।' वि० सं० १२८० माघ सुदी द्वादशी को श्रीमालपुर में पूर्णश्री तथा हेमश्री और वि० सं० १२८१ वैशाख सुदी ६ को जावालिपुर में कमलश्री एवं कुमुदश्री को साध्वी दीक्षा प्रदान की गई।'' वि० सं० १२८३ माघ वदि ६ को वांगसेर में आर्यामंगलमति प्रवर्तिनी पद पर प्रतिष्ठित की गयीं ।११ वि० सं० १२८४ में बीजापुर वासुपूज्य जिनालय में प्रतिमा-प्रतिष्ठा के अवसर पर श्रावकों द्वारा भव्य महोत्सव का आयोजन किया गया ।१२ इसी नगरी में वि० सं० १२८४ आषाढ़ सुदी द्वितीया को आचार्यश्री ने चारित्र१. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० ३५ २. वही पृ० ३४ ३. वही पृ० ३५ ४. वही पृ० ३४ ५. वही पृ० ३४ ६. वही पृ० ३४ ७. वही पृ० ४४ ८. वही पृ० ४४ ९. वही पृ० ४४ १०. वही पृ० ४४ ११. वही पु० ४४ १२. वही पृ० ४४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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