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२३२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं धर्माराधनपूर्वक जिनधर्म की प्रभावना करती हुईं यत्र-तत्र भ्रमण कर रही हैं। आर्यिका सरलमती माता जी - टीकमगढ़ (म०प्र०) के निवासी श्री चुन्नीलाल जैन की धर्मपत्नी श्रीमती सगुनबाई जैन ने श्रावण शुक्ला १३ सं० १९८० के दिन नन्हीं मुन्नी बच्ची को जन्म दिया था । अनन्तर अपनी नन्हीं बालिका का श्रावक युगल ने सुमित्राबाई नाम रखा। सुमित्राबाई की सामान्य शिक्षा टीकमगढ़ में ही हुई। शनैः-शनैः जीवन पथ पर आरूढ़ सुमित्राबाई ने अपनी गृहस्थावस्था का काल व्यतीत किया। - समय ने करवट ली, सुमित्राबाई की वैराग्य भावना जागृत हुई जिसके परिणामस्वरूप आचार्यकल्प श्री श्रुतसागर महाराज से उन्होंने वैशाख सुदी १० संवत् २०२६ के दिन उदयपुर नामक राजस्थान के शोभास्थल पर आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर स्वयं को जिनमार्ग पर आरूढ़ किया । सम्प्रति श्रमणी आर्यिका के पद को अलंकृत किये हुए आत्मकल्याण में दत्तचित्त हैं। आर्यिका सिद्धमती माताजी
प्रत्येक धर्म क्रिया में तथा भगवान् का स्मरण करने में सर्वप्रथम सत्यता और सरलता आवश्यक है। सत्यता और सरलता का मूलभूत साधन त्याग है। अतएव वैशाख शुक्ला १५ संवत्, १९७१ के दिन श्री केसरलाल जैन एवं श्रीमती बच्चीबाई जैन से जन्म लेने वाली कल्ली बाई ने गृह त्याग का निश्चय किया। कालान्तर में अपनी जन्मभूमि खोर जेसानपुरा का परित्याग कर आचार्य धर्मसागर के संघ में पहुँच गयीं। कार्तिक शुक्ला १२ सं० २०२९ के शुभ दिन जयपुर नगर के मध्य आचार्यश्री १०८ धर्मसागर महाराज से आयिका के महाव्रतों के साथ सिद्धमती नामकरण को प्राप्त कर स्वयं को कृतार्थ किया। सत्यता और सरलता की ओर बढ़ती हुई परमपद को प्राप्त करने में प्रयत्नशील हैं।
आयिका श्री सुपार्श्वमती जी ... संसार रूपी रंगमंच पर जन्म-मरण के नाटक का अभिनय अनादिकाल से हो रहा है उसी के अन्तर्गत वि० सं० १९८५ मिती फाल्गन सुदी ९ को राजस्थान के 'मैनसेर' ग्राम निवासी श्री हरख चन्द्र जी चूड़ीवाड़ के यहाँ
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