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________________ दिगम्बर सम्प्रदाय को अर्वाचीन आर्यिकायें : २२३ क्षुल्लिका राजमती माता जी सच्चा साधक वही है, जो अनासक्त होता है । अनासक्त भावप्रवण क्षु० राजमती जी का बचपन का नाम पार्वती था । पार्वती का जन्म बूचाखेडी निवासी श्री शीलचन्द्र जैन एवं श्रीमती अंगूरी देवी जैन से हुआ था । संसार से विरक्त होकर आपने वैसाखसुदी १२ बुधवार के शुभ दिन कोल्हापुर में क्षुल्लिका राजमती रूप में चारित्र पक्ष ग्रहण किया । आप १५०० उपवास कर चुकी हैं। देवलपुर में दीक्षा से पूर्व अपने द्रव्य से आपने वेदी प्रतिष्ठा करायी थी जिसमें आदिनाथ और महावीर स्वामी की मनोरम प्रतिमाएँ हैं । आर्यिका विजय मतो जी विवेक में अद्भुत शक्ति होती है । उसके अनुसार ही मनुष्य के मानस पटल पर विचारों का आविर्भाव होता है । इसी विवेक का आश्रय लेकर अहिल्याबाई ने आचार्यश्री १०८ निर्मलसागर के शिष्य मुनिश्री सन्मति - सागर जी से कार्तिक सुदी ३ सं० २०३२ में कोटा (राजस्थान) में दीक्षा लेकर आर्यिका विजयमती नाम को प्राप्त किया । अहिल्याबाई का जन्म पिड़ावा ( राजस्थान ) ई० १९२८ में श्री राजमल एवं श्रीमती कस्तूरी देवी के घर हुआ था । इन्हें सामान्य हिन्दी एवं राजस्थानी का बोध है किन्तु चारित्र की विशुद्धि से वर्तमान में विजयमतीरूप को सार्थक कर रही हैं । आर्यिका विजयमती जो सरस्वती बाई का जन्म वैसाख शुक्ला १२ सं० १९८४ के दिन ग्राम कामा, जिला भरतपुर (राजस्थान ) निवासी श्री सन्तोषीलाल जैन की धर्मपत्नी श्रीमती चिरोंजी बाई की कुक्षि से हुआ था । आपका विवाह श्री भगवानदास से हुआ था परन्तु दुर्भाग्य से वैधव्य प्राप्त हुआ । वैधव्य होनेपर अपने ज्ञान प्राप्ति के निश्चय को साकार करने हेतु आचार्यश्री विमलसागर महाराज से २४ मार्च १९६० के दिन आगरा नगर के भव्य समारोह में आपने आर्यिका के महाव्रत ग्रहण किये । आर्यिका दीक्षा के बाद आपने श्री १०८ आचार्य महावीरकीर्ति जी से शिक्षा ग्रहण की । अपने अध्यवसाय एवं गुरुवर्य के आशीर्वाद से गहन अध्ययन किया । कालान्तर में आपने ग्रन्थों की रचना की । ग्रन्थ रचना -- (१) आत्मानुभव (२) आत्मान्वेषण नारी | हिन्दी टीका – (१) भगवती आराधना ( २ भाग ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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