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२२२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं के महाव्रत ग्रहण किये और भद्रमती संज्ञा से विभूषित होकर धर्माराधन में तत्पर हैं। आ० यशोमती माता जी
आप दिल्ली पहाडी धीरज पर रहने वाली धार्मिक विचारों की महिला थीं। आपका गृहस्थ नाम मीनाबाई था । वृद्धावस्था के बढ़ते हुए कदमों में भी आपने अपना जीवन सार्थक किया। सन् १९७२ में पू० आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से दिल्ली में आचार्य देशभूषण महाराज से आर्यिका दीक्षा प्राप्त की और यशोमती नाम प्राप्त हुआ। आप अपने संयम को निरतिचार पालन करते हुए धर्मप्रभावना कर रही हैं । आर्यिका यशोमती माता जी
भगवज्जिनेन्द्र द्वारा प्रतिपादित निर्ग्रन्थ मार्ग पर आरूढ़ परमपूज्य बालब्रह्मचारिणी आर्यिका यशोमती माताजी का जन्म स्थान उदयपुर (राजस्थान) है। आपने आचार्यश्री १०८ धर्मसागर महाराज से आश्विन मास संवत् २०३५ में उदयपुर नगर के विशाल जन समूह के मध्य आर्यिकादीक्षा को ग्रहण किया। वर्तमान में संयम को परिपालन करती हुई उपासनारत हैं। आर्यिका रत्नमती माता जी
आप आचार्य धर्मसागर महाराज की दीक्षिता शिष्या हैं। वर्तमान में पू० आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के संघ में रह रही हैं। आर्यिका श्री राजमती माता जी ___ मध्यप्रदेश के 'मुरैना' मण्डलान्तर्गत 'अम्बा' नामक ग्राम में आर्यिका श्री राजमती माताजी के पार्थिव शरीर का उदय हुआ था। आपके शरीरविकास के साथ धर्मभावना का भी विकास हुआ। शनैः-शनैः जब धर्मभावना का चिन्तन बढ़ता गया तब उसका परिणाम यह हुआ कि आपने आचार्यश्री १०८ सुमतिसागर महाराज से आर्यिका के महाव्रतों को धारण कर स्वयं को धन्य किया। वर्तमान में आप धर्मप्रभावना में तत्पर हैं। जिसके उदाहरण कोटा (राजस्थान) में जैन औषधालय एवं जैन विद्यालय, सागर (म० प्र०) में वर्णीभवन, वाकल (म० प्र०) में पाठशाला एवं पाण्डिचेरी में जिनालय आदि हैं। .
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