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________________ दिगम्बर सम्प्रदाय की अर्वाचीन आर्यिकायें : २१९. क्षुल्लिका निर्मलमती जी बाल्यकाल से वैराग्य भाव को धारण करने वाली मुन्नी जैन का जन्म कटनी (म० प्र०) में हुआ। आपके पिता श्री कपूरचन्द्र जैन एवं माता श्रीमती चैन बाई हैं। आपने १६ वर्ष की अल्पायु में आचार्य सन्मतिसागर महाराज से आषाढ़ कृष्णा ११ वि० सं० २००८ में क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण कर क्षु० निर्मलमती नाम पाया । वैराग्यमय जीवन के साथ अब सन्मार्ग पर अवस्थित हैं। क्षुल्लिका निर्माणमती माता जी मध्यप्रदेश के पन्ना मण्डल के निकटस्थ खवरा नामक ग्राम है। इस ग्राम में श्री हीरालाल और केसरबाई नामधेय श्रावक-यगल धर्माराधन करते हुए रह रहे थे किन्तु पारिवारिक परिस्थितियोंवश जबलपुर प्रवासी हो गये। इस श्रावक-युगल ने तीन पुत्र और दो पुत्रियों को जन्म दिया था। युगल परिवार में रहते हुए भी धर्म भावना में तल्लीन रहता था। कालान्तर में श्री हीरालाल जी क्षल्लक दीक्षा और केसर बाई ने वि० सं० २०३६ की फाल्गुन शुक्ला २ के दिन आचार्यकल्प श्री सन्मतिसागर महाराज से सम्मेदशिखर नामक तीर्थस्थल के पावन परिक्षेत्र में क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण की। आर्यिका प्रज्ञामती माता जी राजस्थान प्रान्त के उदयपुर जिले के कूण्डा नामक ग्राम में श्री रामचन्द्र जी एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कूनग बाई की पुत्री का नाम ललिता था। १८ वर्ष की अवस्था में पति का देहावसान हो गया। तभी से ललिता धर्माराधनापूर्वक जीवन व्यतीत करने लगीं। कालान्तर में घाटौल पञ्चकल्याणक के अवसर पर अक्षय तृतीया के शुभ दिन में महाराजश्री से आयिका दीक्षा ग्रहण कर ली। इस समय प्रज्ञामती नाम धारिणी आप महिलाओं को संयम, व्रत नियम, स्त्रीपर्याय उच्छेद आदि सैद्धान्तिक उपदेशों को देती हुई स्थान-स्थान पर मुनिसंघ में विहार कर रही हैं । स्व० आर्यिका पार्वमती माता जी जयपुर के समीपस्थ खेड़ा ग्राम में श्री मोतीलालजी एवं श्रीमती जड़ाबाई निवास करते थे । इनकी पुत्री का नाम गेन्दाबाई था। गेन्दाबाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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