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दिगम्बर सम्प्रदाय की अर्वाचीन आर्यिकायें : २११
आर्यिका कनकमती माताजी
टोकमगढ़ जनपद के बड़ागांव में दि० गोलापूर्व जाति के श्री हजारी. लाल जी जैन एवं श्रीमती परमाबाई की बालिका का नाम चिरोजाबाई था । चिरोजाबाई का विवाह बारह वर्ष की अल्पायु में हुआ था किन्तु दुर्भाग्य से ये १६ वर्ष की अल्पायु में ही विधवा हो गयों। अनन्तर आचार्यश्री १०८ विमलसागर जी महाराज की सत्संगति से आप में वैराग्य प्रवृत्ति जागृत हुई। आपने शिवसागर महाराज से क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण कर ली। अनन्तर वैसाख सुदी ११ सं० २००९ के दिन शान्तिवीर नगर में श्री महावीर जो की परमपावन धरा पर आचार्य १०८ शिवसागर महाराज से आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर स्वयं को धन्य किया।
आर्यिका कल्याणमती जो __उत्तर प्रदेश प्रान्त के अन्तर्गत मुबारिकपुर ( मुजफ्फरनगर ) नामक ग्राम के श्री समयसिंह एवं श्रीमती समुद्रीबाई की विलासमती नाम की पत्री थी। विलासमती को शिक्षा साधारण हुई थी और विवाह भी हुआ था। आ० सन्त गणेशप्रसाद वर्णी की सत्संगति के कारण विलासमती के हृदय में वैराग्य प्रवृत्ति जाग उठी फलस्वरूप सम्मेदशिखर के परमपावन स्थल पर सातवी प्रतिमा के व्रत ग्रहण कर लिए। इसके बाद इन्होंने आचार्यश्री १०८ शिवसागर जी से वि० सं० २०२२ शान्तिनगर महावीर जो में क्षल्लिका दीक्षा ली और कल्याणमती संज्ञा से विभूषित हो गयीं। अनन्तर आचार्यश्री शिवसागर से ही कोटा नगर के मध्य आर्यिका के महावत लिए। क्षुल्लिका कमलश्री माताजी
शान्त स्वभाव, गुरुभक्ति, धर्मप्रचार और आत्मकल्याण के साथ जनकल्याण करने वालो कमलश्री माताजी का दीक्षा के पूर्व का नाम पद्मावतो था। पद्मावती का जन्म अक्षय तृतीया के दिन १९१५ ई० को वसगडे जिला कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री तासोबा सौदे और माता का नाम श्रीमती गान्धारी था। पद्मावती का विवाह श्री बाबूराव किणे के साथ ६ वर्ष की अल्प आयु में हो गया था। धर्मपरायण होने से आ• विशालमती की सत्प्रेरणा से ई० १९५५ में
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