SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१० : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं वि० सं० २०२१ में मुक्तागिरि पावन क्षेत्र पर आचार्यश्री विमलसागर जी से आर्यिका व्रत ग्रहण कर आदिमती नाम से विख्यात हुईं। आर्यिका अरहमती जी वीरगांव के निवासी श्री गुलाबचन्द्र जी एवं श्रीमती हरिणोबाई की सन्तान वोरबाला कुन्दनंबाई को वैधव्य जीवन में विरक्ति की भावना जागृत हुई। फलस्वरूप वि० सं० २०२० में मुनिश्री सुपार्श्वसागर से क्षुल्लिका दीक्षा और एक वर्ष पश्चात् ही वि० सं० २०२१ में आचार्यश्री १०८ शिवसागर महाराज से शान्तिवीर नगर महावीर जी क्षेत्र पर आर्यिका दीक्षा लेकर चरम लक्ष्य प्राप्त कर लिया। आचार्य प्रदत्त आर्यिका दीक्षा की अरहमती संज्ञा है। क्षुल्लिका अरहमती माताजी 'जिसने संसार को असार देखा उसने सार पा लिया।' संसार को असार देखने वाली क्षुल्लिका अरहमती का जन्म वीरमगाँव में हुआ था। बचपन का नाम कुन्दनमती था। इनके पिता खण्डेलवाल जातोय श्री कुन्दनलाल जैन हैं। दीक्षा मुनिश्री १०८ सुपार्श्वसागर महाराज से रामपुर में ग्रहण की थी। सम्प्रति क्षु० अरहमतो लक्ष्यप्राप्ति में संलग्न हैं। आर्यिका श्री इन्दुमती जी राजस्थान प्रान्तान्तर्गत 'नागौर' मण्डल के डेह ग्राम के निवासी श्री चरणमल जी पाटनी की धर्मपत्नी ने वि० सं० १९६४ में एक नन्हींमुन्नी को जन्म दिया था, जिसका नाम मोहिनीबाई रखा गया। मोहिनी बाई का विवाह १२ वर्ष की अल्पायु में श्री चम्पालाल सेठी जी के साथ बारसोई (पूर्णियाँ) में हुआ था किन्तु दुर्भाग्यवश छः महीने के अनन्तर पति का देहान्त हो गया। पति वियोग ने मोहिनी की दिशा परिवर्तित कर दी। वह प्रेयमार्ग से हटकर श्रेयमार्ग की ओर उन्मुख हुई, जिससे उन्होंने आचार्यकल्प श्री १०८ चन्द्रसागर जी महाराज से सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये। वि० सं० २००० मिती आश्विन सुदी ११ को क्षुल्लिका दीक्षा ली । मुनिश्री के स्वर्गारोहण के बाद आपने आचार्यश्री वीरसागर जो से आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर इन्दुमती रूप अभिधान को अलंकृत किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy