________________
दक्षिण भारत की जैन साध्वियों एवं विदुषी महिलाएँ : १७७
दान, अभयदान, औषधिदान, ज्ञानदान एवं शास्त्रदान - को सतत देकर " सौभाग्यखानि" की उपाधि प्राप्त की थी । लक्ष्मीदेवी ने श्रवणबेलगोल में एक सुन्दर जिनालय बनवाया जो एरडुकट्टेवसति के नाम से प्रसिद्ध है । उन्होंने अन्य कई जिनालय बनवाये तथा जीर्णोद्धार करवाया ! जैन धर्म की परम उपासिका इस महिला ने अन्त में संन्यास विधिपूर्वक शरीर का त्याग किया' ।
पोचिकव्बे :
आप जैन धर्म के महान् सेवक गंगराज को माता तथा बुद्धमित्र की गुणवतो एवं धर्मात्मा पत्नी थीं । आपने अनेक धर्म कार्य किये थे, यथादान दिये तथा बेलगोल में अनेक मंदिर बनवाये और अन्त में ई० सन् १९२१ में सल्लेखना विधिपूर्वक देह त्याग किया ।
महान् सेनापति गंगराज से जब महाराजा विष्णुवर्धन ने उनके अपूर्वं कार्यों के लिये इच्छित पुरस्कार माँगने के लिये कहा तो उस धर्मवीर ने 'गंगवाडी' नाम का प्रदेश माँगा । क्योंकि इस प्रान्त में प्राचीन जैन तीर्थों और जिन मंदिरों का बाहुल्य था । उन भग्न मन्दिरों का जीर्णोद्धार पुरस्कार में प्राप्त 'गंगवाडी' प्रान्त की समस्त आय से होता था । अपनी माता और पत्नी के समाधिमरण की स्मृति में उसने श्रवणबेलगोल में स्मारक भी स्थापित किये थे । पुरस्कार में प्राप्त 'परम' नामक ग्राम को अपनी माता तथा भार्या द्वारा निर्मित जिन मंदिरों को भेंट कर दिया ।
एक शिलालेख में लिखा है कि जिस प्रकार पूर्वकाल में जिनधर्माग्रणी अतिम के प्रभाव से गोदावरी नदी का प्रवाह रुक गया था वैसे ही कावेरी नदी के पूर से घिर जाने पर भी जिनभक्ति के प्रसाद से गंगराज की लेशमात्र भी क्षति नहीं हुई । शिलालेखों में कहा गया है कि जिस प्रकार इन्द्र का वज्र, बलराम का हल, विष्णु का चक्र, शक्तिधर की शक्ति और अर्जुन का गाण्डीव था उसी प्रकार विष्णुवर्धन की वास्तविक शक्ति गंगराज थे ।
१. (क) डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन, प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ, पृ० १४२
(ख) डॉ० हीरालाल जैन - भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान - पृ० ४० (ग) ब्र० पं० चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० ४७९
२. डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन - प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँपृ० १४४
१२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org