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१४८ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं का उन्हें भी समान अवसर प्राप्त हुआ। इससे यह प्रमाणित होता है कि उस काल की साध्वियाँ तथा श्राविकाएं ज्ञान-गर्भित थीं एवं साहित्य सेवा में उनका भी महत्त्वपूर्ण योगदान था ।
रानी गुफा उदयगिरि व खेडगिरि नामक पर्वतों पर बनवाई गई थी। इस पर खुदे लेख में यह भी स्पष्ट उल्लेख है कि तीर्थंकर जिनेश्वर की मूर्ति को अपने देश लोटा लाया था जिसे पहले नन्दराजा अपहरण करके पाटलीपुत्र ले गया था। इसका एक प्रमाण मन्छापुरी गफा में भी दिखाई देता है जहाँ कलिंग राजा तथा रानी दोनों ने जिन प्रतिमा की पूजा की थी।
दक्षिण के तमिल प्रान्त में चोल व पांड्य नरेशों ने जैन धर्म को आश्रय दिया था। यह भी उल्लेख प्राप्त होता है कि खारवेल के राज्याभिषेक के अवसर पर पांड्य नरेश ने कई जहाजों में उपहार भरकर भेजे थे। क्योंकि दोनों राजा जैन धर्म के अनुयायी थे। "नालिदियर" तामिल ग्रन्थ की रचना के सम्बन्ध में कहा जाता है कि उत्तर भारत के आठ हजार साधु पुनः उत्तर भारत लौटना चाहते थे परन्तु पांड्य नरेश उन्हें वहीं बसाना चाहते थे। रात्रि को लौटते समय प्रत्येक साधु ने एक-एक ताड़पत्र पर एक-एक पद लिखकर रख दिया। इन्हीं को एकत्रित कर 'नालिदियर' ग्रन्थ का संकलन हुआ | आर्या पोइणी
आर्या पोइणी का उल्लेख कलिंग नरेश खारवेल के समय में प्राप्त होता है। भगवान् महावीर-निर्वाण की चतुर्थ शताब्दी के प्रथम चरण में राजा खारवेल ने आगम साहित्य को सुरक्षित व सुव्यवस्थित करने के लिये एक परिषद् का आयोजन किया जिसमें आचार्य सुस्थित की परम्परा के ५०० श्रमण सम्मिलित हुए थे। उस समय आर्या पोइणी के
१. डॉ० हीरालाल जैन-भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान
पृ० ३०७ २. के० पी० पाणीग्रही-आर्योलोजिकल रीमेन्स-उद्धृत एन० के० साहु,
पृ० ३५९-३६८ ३. खण्डगिरि में प्राप्त शिलालेख से उद्धृत ।
आ० हस्तीमलजी-जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग २, पृ० ७८२ ४. साधुओं के प्रमुख को आचार्य नाम से संबोधित करते हैं।
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