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१४६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं शिष्य बना। कालान्तर में उसने जैन धर्म के प्रचार व प्रसार के लिये विविध क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण कार्य किया। सम्प्रति बड़ा दयालु और भद्र प्रकृति का राजा था। उसने निर्धन लोगों की भलाई के लिए सात सौ दानशालाएँ खोली तथा दीन दुःखी निराधार लोगों के लिए राज्यकोष भी अर्पित कर दिया ।' सम्प्रति ने जैन धर्म के स्तूप, मन्दिर तथा जिनालय आदि निर्माण कराये, लाखों जिन प्रतिमाओं के नये बिम्ब भरवाये तथा पुराने जिनालयों | मन्दिरों का जिर्णोद्धार करवाया।२ सम्प्रति भारतवर्ष का एक प्रतापी सम्राट् था। उसने अपने सम्पूर्ण राज्य में जैनधर्म को राज्य धर्म के रूप में स्थापित किया। बृहत्कल्पसूत्र के भाष्य में लिखा है कि सम्प्रति ने अपने कर्मचारियों को साधु वेश में आन्ध्र आदि सुदूर प्रदेशों में जैन धर्म के प्रचार के लिये भेजे थे, ताकि साधुसाध्वियों को भोजन तथा ठहरने की उचित व्यवस्था रहे। उसने मिस्र, अरब, ईरान, यूनान, चीन, जापान आदि देशों तक जैन धर्म का प्रचार किया था।
रानी उविला:
प्राचीन काल में मथुरा नगरी के राजा पूतिमुख की रानी उविला थी। किसी समय एक प्राचीन स्तूप को लेकर राजा की पत्नियों में आपसी संघर्ष होने लगा । राजा को दूसरी पत्नी बौद्धधर्मानुयायी थी, उसने स्तूप पर अपना कब्ज़ा जमा लिया। रानी उविला ने दूर-दूर से जैन विद्वानों को बुलाकर शास्त्रार्थ करवाया और अथक छानबीन के बाद यह सिद्ध किया कि यह स्तूप जैनों का ही है। इस शुभ अवसर पर धार्मिक उत्सव मनाये जाने के पश्चात् रानी ने अन्न-जल ग्रहण किया।।
१. गुप्त साम्राज्य का इतिहास-पृ० १० २. रथयात्रा-राजा सम्प्रति के समय की रथयात्रा का वर्णन वसुदेव हिण्डी तथा
आवश्यकचूणि में प्राप्त होता है । ३. (क) बृहत्कल्पभाष्य-१, ५०, गा० ३२७५ से ३२८९
(ख) कल्पसूत्र-पृ० १३२-१३३
(ग) जैन धर्म का इतिहास-पृ० १३६ ४. डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन-प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं
पृ० ५९
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