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________________ १३४ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं में पारंगत जंबूकुमार का वाग्दान प्रतिष्ठित एवं समृद्ध श्रेष्ठियों की आठ गुणवान् कन्याओं के साथ हुआ था, जिनके नाम समुद्रश्री, पद्मश्री, पद्मसेना, कनकसेना, नभसेना, कनकधी, कनकवती एवं जयश्री थे। कई कलाओं में निपुण ये श्रेष्ठिकन्याएं एक दूसरे की सहेलियाँ थीं। नगर के श्रेष्ठ पराक्रमी तथा रूपवान् श्रेष्ठि पुत्र से सगाई होने पर ये सभी अपने को भाग्यवान् समझती थीं।। जंबुकुमार के आजीवन ब्रह्मचर्य के प्रण की चर्चा शीघ्र ही नगर में फैल गई । आठों श्रेष्ठिपुत्रियों के माता-पिता इस समाचार से स्तब्ध रह गये । कन्याओं की मधुर आकांक्षाओं तथा भावी जीवन के रंगीन स्वप्न धल-धसरित हो गये। उन्हें चितित देख कर उनकी माताओं ने उन्हें अन्य योग्य वर से वाग्दान करवाने का आश्वासन दिया। परन्तु भारतीय संस्कृति व सदाचार की प्रतिमूर्ति इन श्रेष्ठि पुत्रियों ने अपने माता-पिता से स्पष्ट शब्दों में कह दिया-"आपने हमें उन्हें वाग्दान में दे दिया है अतः वे ही हमारे स्वामी हैं। वे जिस पथ का अवलम्बन करेंगे, चाहे वह कितना ही दुर्गम क्यों न हो, हमारे लिये वही अनुकरणीय होगा। आप अन्य किसी विकल्प का विचार न करें।"२ __ कन्याओं के दृढ़ निश्चय को सुन कर उनके पितृजनों ने ऋषभदत्त (वर के पिता) को विवाह की स्वीकृति का संदेश प्रेषित कर दिया। दोनों ओर विवाह की तैयारियाँ होने लगीं। माता-पिता ने विधि-विधान के साथ जम्बूकुमार का आठों कन्याओं के साथ पाणिग्रहण करवाया। विवाह की प्रथम रात्रि को जंबूकुमार नवविवाहिता पत्नियों को संसार की क्षणभंगुरता के बारे में समझाने लगे। विद्वान् श्रेष्ठि कन्याओं ने भी पति जंबूकुमार को समझाने की कोशिश की। उसकी पत्नी पद्मश्री ने जंबूकुमार को सांसारिक सुख न भोगने पर एक दृष्टान्त दिया-"एक समय एक वानर अपनी पत्नी के साथ एक वृक्ष पर रह रहा था। एक दिन वह वृक्ष के नीचे किसी द्रव्य कूप में कूद पड़ा और अति सुन्दर राजकुमार बन गया । यह देख वानरी भी कूदी और वह भी एक सुन्दर राजकुमारी बन गई । परन्तु राजकुमार देव बनने के लोभ से पुनः वृक्ष के नीचे द्रव्य १. डा० हीरालाल जैन-भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान-पृ० १४९ २. आ० हस्तीमलजी-जैनधर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय खण्ड, पृ० २१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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