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________________ ११२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं उपदेशों का श्रद्धासहित श्रवण कर आत्मोन्नति के लिये द्वादशवतों को अंगीकार करो"। अश्विनी ने कोष्टक चैत्य में भगवान् महावीर के सान्निध्य में पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रतों को समझकर गृहस्थ धर्म के बारह व्रतों को अंगीकार किया तथा अपने घर आकर उसका दृढ़तापूर्वक पालन करने लगी'। फाल्गुनी : फाल्गुनी, श्रावस्ती के श्रेष्ठी शालिनीपिता की पतिपरायणा सहमिणी थी। एक समय तीर्थंकर महावीर विभिन्न प्रान्तों का भ्रमण करते हुए श्रावस्ती नगर के कोष्टक चैत्य में पधारे तब शालिनीपिता ने भी अन्य श्रेष्ठियों के समान तीर्थंकर महावीर के समवसरण में जाकर श्रावक के बारह व्रतों को ग्रहण किया तथा अपनी पत्नी को भी प्रेरित किया। श्रेष्ठी नन्दिनीपिता के समान शालिनीपिता श्रेष्ठो, भगवान् महावीर के समवसरण में आ गये। फाल्गुनी समवसरण में उपदेश श्रवण की पिपासा से कोष्टक चैत्य में गई । वहाँ महावीर की तीन बार श्रद्धापूर्वक प्रदक्षिणा करके वह सबके साथ परिषद् में बैठी और धर्मदेशना श्रवण किया । फाल्गुनी ने जब बारह व्रतों को सुना तो उनके मन में यह विश्वास हो गया कि गृहस्थी में प्रवृत्त रहते हुए इन सबका सहज रूप से पालन किया जा सकता है। उसने उन व्रतों को अंगीकार किया और प्रसन्न मन से उसने अपने जीवन में बारह व्रतों का पालन करते हुए अपनी आत्मा का कल्याण किया। श्रीमती: वसंतपुर के देवदत्त श्रेष्ठी की पुत्री श्रीमती की माता का नाम धनवती था। माता धनवती अपनी कन्या का लालन-पालन पुत्र की भाँति करती हई उसे अनेक जीवनोपयोगी कलाओं में पारंगत किया। १. पू० घासीलालजी-उपासकदशांग-अ० ९१०, सूत्र २७३-२७६, पृ० ५१८ ५२१ २. उपासकदशांग, सू० ५६ ३. पू० घासीलालजी-उपासकदशांग-अ० १०, सूत्र २७३-२७६, पृ० ५१८-५२१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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