________________
तीर्थकर महावीर के युग की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएं : ६९ मानकर उसके घर में सभी प्रकार सेवा करके त्याग और विनयशीलता का परिचय दिया परन्तु चन्दनबाला के अनुपम सौन्दर्य, निष्ठापूर्ण सेवा और विनय ने सैनिक की पत्नी के मन में ईर्ष्या और संदेह पैदा कर दिया। इस संदेह के कारण सैनिक ने चंदनबाला को दासी के रूप में बेचने का निश्चय किया और बाजार ले गया। उसने चंदनबाला को एक धनिक गणिका के हाथों बेच दिया। चंदनबाला ने उसके यहाँ जाने से इन्कार किया किन्तु वेश्या का आग्रह प्रबल था और वह अपने सेवकों द्वारा बलपूर्वक उसे ले जाने का प्रयास करने लगी। तभी एक विचित्र घटना हुई। बहुत से बंदर उस वेश्या पर टूट पड़े। किसी ने उसे बचाने का साहस नहीं किया परन्तु चंदनबाला ने उसे बचाया । वेश्या उपकृत और लज्जित थी।
उसी समय धनवाह सेठ वहाँ आया और उसने धर्म, कर्तव्य और वात्सल्य से प्रेरित होकर वेश्या को समुचित मूल्य दिया और चन्दनबाला को स्नेहपूर्वक अपने घर लाया। परन्तु विधि की विडंबना ही कुछ और थी। चन्दनबाला का रूप और सेवा देखकर सेठ की पत्नी सशंकित हो गई और उसने सेठ के साथ कलह और चन्दनबाला पर अत्याचार करने शुरू कर दिये।
एक बार सेठ नगर से बाहर गये हुए थे। सेठानी ने अवसर देख चन्दना के सुन्दर केश काट दिये और मुंह काला कर दिया। एक छोटा सा वस्त्र पहनने को दिया, हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ियाँ डालकर उसे तहखाने में डाल दिया तथा स्वयं अपने पिता के घर चली गई।' ___ इस घोर विपत्ति के कारण चन्दना ने आत्म-चिंतन करना शुरू कर दिया। तीन दिन बाद जब धनवाह सेठ घर लौटकर आये तो चन्दना को नहीं देख दुःखित हुए और दासी के द्वारा संकेत प्राप्त कर चन्दना को. बाहर निकाला। उसे भूख से व्याकुल देखकर सेठ ने सूप में रखे हुए उड़द के वाकले दे दिये, व्रत में दृढनिश्चयी चन्दना त्यागी महात्मा की राह देखने लगी। __ भगवान् महावीर ने एक विकट प्रतिज्ञा की थी जिसके लिए पांच माह और १५ दिन हो गए किन्तु आहार प्राप्त नहीं हो सका । अचानक चन्दन
१. (क) हेमचन्द्राचार्य-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पर्व १०, सर्ग ४, पृ० ८५
(ख) कल्पसूत्र, हिन्दी अनुवाद, पृ० ८१ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org