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________________ तीर्थकर महावीर के युग की जैन साध्वियाँ एवं विदुषी महिलाएं : ५९ शुभ संदेश से अतिर्षित हो राजा ने मात्र मुकूट छोड़कर धारण किये हुए समस्त आभूषण दासी को उपहार में दे दिये और उसे दासत्व से मुक्त कर दिया। __आज क्षत्रियकुण्ड की सजावट का कहना ही क्या ? क्षत्रियकुण्ड का हर नर-नारी अतीव प्रसन्न था, वैशाली के राजा, महाराजा, एवं नर-नारी ही राजप्रासाद में नहीं आये अपितु स्वर्ग के देवता भी महावीर के जन्म के समय भूतल पर उतर आये। चारों ओर हर्ष साकार रूप ले रहा था । परम्परानुगत प्रणाली के अनुसार इस उत्सव की खुशो में बन्दीगह के समस्त बन्दियों को मुक्त करने की राजा सिद्धार्थ ने आज्ञा दी। राज-कोष से याचकों व सेवकों को मुक्तहस्त से दान दिया गया। माता त्रिशला के हर्ष को प्रकट करने के लिए तो विद्वानों व कवियों के पास शब्द ही नहीं थे । ऐसा पुत्र-रत्न पाकर माता त्रिशला ही नहीं बल्कि सारा नारी जगत गौरवान्वित हो उठा। बालक के गर्भ में आने के साथ ही राज्य में धन-धान्य की वृद्धि होने के कारण माता ने अपने शिशु का नाम 'वर्द्धमान' रखा। ___ माता त्रिशला सामान्य पुत्र की जननी नहीं थीं। उन्होंने त्रिकालदर्शी जिनेन्द्र को जन्म दिया था, जिसकी सेवा करने को सुरेन्द्र लालायित रहते थे। सौधर्म इन्द्र ने अवधिज्ञान से प्रभु के जन्म को जाना, जानकर परिवार सहित माता त्रिशला के निवास स्थान पर आये एवं उन्हें प्रणाम किया । भोगंकरा आदि नाम की छप्पन दिक् कुमारियों ने बालक व माता का सूतिका कर्म किया। तत्पश्चात् सुरेन्द्र ने प्रभु का जन्मोत्सव मनाया। शनैः शनैः अपनी बालक्रीड़ा से माता-पिता को आनंदित करते हुए वर्द्धमान बड़े होने लगे । एक समय नगर के बालक आम्र वृक्ष के आसपास लुका-छिपी खेल रहे थे। इतने में उन्होंने एक भयंकर सर्प को झाड़ से उतरते देखा। भय से क्रन्दन करते हुए बालक भाग खड़े हुए पर वर्द्धमान तो निडर थे, दूसरे बच्चों को सर्प डस न ले इस हेतु दया की भावना से प्रेरित होकर उन्होंने साँप को जोर से पकड़ा और रस्सी के समान पूर्ण शक्ति से दूर फेंक दिया । बालक उनकी इस निडरता से बड़े प्रभावित हुए और फिर खेल में मग्न हो गये । यह बात माता त्रिशला के कानों में पड़ी, १. कल्पसूत्र ५२, पृ० ५२; त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व १०-१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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