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प्रागैतिहासिक काल की जैन सध्वियां एवं विदुषी महिलाएं : ४९ परिचित थे । अतः एक दिन गंगा नदी के किनारे पंचाग्नि में तपते हुए नाग-नागिन का उद्धार किया। इस घटना का वर्णन जैन साहित्य में अतिविस्तृत हुआ है।' अहिंसा तथा करुणा के गुणों को प्रतिपादित करने के लिये इस दृष्टान्त पर कई कथाएँ, कविताएं व स्तवन की रचनाएँ हुई हैं। माता-पिता से संसार-त्याग की आज्ञा प्राप्त कर पार्श्वकुमार ने भगवती दीक्षा ग्रहण की। एक समय तपस्या करते हुए पूर्वभव के तापस के जीव ने मूसलाधार वर्षा का उपसर्ग किया किन्तु दृढ़धर्मी पार्श्वनाथ ने कर्मों का क्षयकर केवलज्ञान प्राप्त किया। केवली प्रभु की त्याग व वैराग्यपूर्ण वाणी सुनकर अश्वसेन व वामादेवी तथा प्रभावती ने कई राज्य महिषियों के साथ दीक्षा ग्रहण की। __ तीर्थंकर पार्श्वनाथ के समय सुभद्रा गाथापत्नी, जो बहुपुत्रिकादेवी के रूप में समवसरण में आई थी, उसका वर्णन जैन ग्रन्थों में इस प्रकार किया गया है-एक समय सूत्रता आर्या अन्य साध्वियों के साथ आहार लेने के लिये सुभद्रा गाथापत्नी के यहाँ पहुँची। उस महिला ने अपने निःसंतान होने के दुख का विवरण कहा तथा सन्तान प्राप्ति के लिए कोई उपाय जानना चाहा । साध्वी जीवन में इस प्रकार का कोई भी उपाय बताने का निषेध है,यह जानकारी देते हुए सुव्रता साध्वी ने उन्हें दुःखविनाशक वीतराग धर्म का त्याग-मार्ग अपनाने का उपदेश दिया। सुभद्रा ने श्राविका धर्म स्वीकार किया और अन्ततोगत्वा प्रवजित हुई । अपने मन में संतान प्राप्ति की भावना गहरी होने के कारण संसार त्याग करने पर भी उस भावना को मानस पटल पर से नहीं निकाल पाई। अतः त्यागवृत्ति के नियमों का यथारीति पालन करने पर वह मृत्यूपरान्त देवलोक गई और वहाँ अपनी वैक्रिय शक्ति से कई बालकों को उत्पन्न की । अतः उसे बहुपुत्रिका देवी नाम दिया गया।
१. (क) आ० हस्तीमलजी-जैन धर्म का मौलिक इतिहास-पृ० २९० (ख) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र-पर्व ९, सर्ग ३
-तिलोयपन्नत्ति पद्मचरित, महापुराण में विवाह का उल्लेख नहीं मिलता। २. आ० हस्तीमलजी-ऐतिहासिक काल के तीन पुरुष-पृ० १६२ ३. आ० हस्तीमलजी-जैन धर्म का मौलिक इतिहास-पृ० ३१५-३१८ ४. वही, पृ० ३२०
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