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________________ ३८ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ महान् शक्तिशाली राजा रावण की पट्टरानी थी। अपनी गुण गरिमा के कारण ही उसे राजा रावण की पट्टरानी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । मन्दोदरी रावण को हितोपदेश देकर सदैव सुमार्ग पर लाने का प्रयत्न करती रहती थी । मन्दोदरी की व्यवहार कुशलता का प्रमाण हमें निम्नपंक्तियों में दृष्टिगत होता है— जब खरदूषण द्वारा रावण की बहिन चन्द्रनखा का अपहरण किये जाने पर वह उसको मारने को उद्यत होता है तब मन्दोदरी कहती है, " हे नाथ, कन्या निश्चय ही पराया धन होती है, उसे पिता का घर त्यागना ही होता है । खरदूषण जो आपकी बहिन को ले गया है, वह योग्य है, कई विद्याओं में पारंगत है । यदि युद्ध में वह मारा गया तो अपहरण के दोष से दूषित कन्या को दूसरा कोई वरण नहीं करेगा अतः उसे विधवा ही रहना पड़ेगा ।" मन्दोदरी के इस नीतियुक्त कथन को ध्यान में रखते हुए रावण शान्त हुआ और युद्ध करने के अपने निश्चय को त्याग दिया । इसी प्रकार जब रावण सीता का अपहरण करके लाया तब भी लोकव्यवहार एवं न्याय का उत्तम ज्ञान रखनेवाली मन्दोदरी ने पति को बहुत समझाया था । यद्यपि इस पतिपरायण नारी ने पति के दुःख से द्रवित होकर सोता को रावण की पत्नी बनने की प्रेरणा दी थी । लेकिन I सीता ने कड़े शब्दों से प्रतिकार कर उसे ठुकरा दिया। रावण बलपूर्वक सीता को पत्नी क्यों नहीं बना सका, इसका रहस्योद्घाटन इस प्रकार करते हुए अपनी रानी से कहा, "हे देवो, मैंने निर्ग्रन्थ मुनियों की सभा में यह प्रण लिया है कि जब तक कोई भी पर स्त्री मुझे स्वयं नहीं चाहेगी तब तक मैं बलपूर्वक उसे वरण नहीं करूँगा । अतः तुम सीता को प्रसन्न करो, ताकि मेरा असंतुष्ट मन शान्त हो सके । ” पतिपरायणा मन्दोदरी ने सीता को समझाने का बहुविध प्रयास किया परन्तु महासती सीता पर उसका कोई असर नहीं हुआ । हनुमान ने तो उसके गर्व को चूर करते हुए उसे पटरानी के स्थान पर दूतो का कार्य करने का उलाहना दिया साथ ही यह भी कहा कि 'हे मन्दोदरी, तुम्हारा वह सौभाग्य तथा उन्नतरूप कहाँ गया ? जान पड़ता है कि तुम रति कार्य के विषय में अत्यन्त साधारण स्त्री हो गई हो । अन्त में रावण की पराजय के पश्चात् राम मन्दोदरी आदि रानियों को समझाते हैं । संसार को असार्थता तथा क्षणभंगुरता को देख कर मन्दो - १. रविषेणाचार्य, पद्मपुराण भाग २, पर्व ५३, पृ० ३३१ " २. वही । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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