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________________ जैनेतर परम्पराओं में श्रहिंसा ७३ आगे चलकर ब्रह्मविहारों का विवेचन करते हुए मैत्री, करुणा, मुदिता एवं उपेक्षा की भावनाओं को प्रस्तुत किया है । मैत्रीभावना 'क्षमा' पर आधारित होती है । अतः 'क्षमा' को बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । यह सबसे बड़ा बल है तथा इसे धारण करने वाला ब्राह्मण कहलाता है ।" और जो द्वेष से दूषित होता है वह हिंसा करता है | अतः इन गुण-अवगुणों को देखते हुए मैत्रीभावना को अपनाना चाहिए । किन्तु यदि कोई व्यक्ति मंत्री भावना का प्रारम्भ अपने वैरी के साथ करता है तो वह असफल रहेगा, क्योंकि वैरी को याद करते ही उसके प्रति जगी हुई वैर-भावना CTET स्वरूप आगे आ जायेगी । अतः उसे अपनी मित्रता का प्रारम्भ अपने प्रियजनों से करके, मध्यस्थजनों से होते हुए अन्त में वैरी तक पहुँचना चाहिए, जैसे"भिक्षु को" - "अत्यन्त प्रिय सहायक के ऊपर, अत्यन्त प्रिय सहायक के बाद मध्यस्थ पर, मध्यस्थ से वैरी व्यक्ति पर मंत्री भावना करनी चाहिए" .........|” २ करुणा के विषय में भी यही क्रम बताया गया है, किन्तु 'अंगुत्तरट्ठकथा' में करुणा भावना बढ़ाने का जो क्रम दिया गया है, वह इसके विपरीत-सा लगता है । इस प्रकार मैत्री, करुणा, मुदिता एवं उपेक्षा का सही-सही पालन करनेवाला ही विशुद्धिमार्गी होता है । बोधिचर्यावतार-आचार्य शान्तिदेवविरचित 'बोधिचर्यावतार' में कहा गया है कि बोधिसत्त्व को सभी प्राणियों का हित चाहने वाला होना चाहिए, क्योंकि एक प्राणी का घात करके भी मनुष्य हीन बन जाता है और जो अनेक जीवों का अहित करता है अथवा १. खन्तिबलं बलानीकं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं । धम्मपद, २६. १७. २. विशुद्धि मार्ग, पहला भाग, पृ० २६५. ३. चित्तोत्पादसमुद्रांश्च सर्वंसत्वसुखावहान् । सर्वसत्त्वहिताधानाननुमोदे च शासिनाम् ॥३॥ Jain Education International तृ० परिच्छेद, बोधिचित्तपरिग्रह | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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