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________________ जैनेतर परम्पराओं में अहिंसा इस प्रकार योग सूत्र में हिंसा-अहिंसा के बहुत ही सूक्ष्म रूपों पर विचार किया गया है। ऐसे हिंसा के २७ प्रकार तो सामान्यतौर से समझ में आ जाते हैं किन्तु उसके बाद के बताए हुए प्रकार जिन्हें व्यास बढ़ाकर ८१ ही नहीं बल्कि असंख्य तक ले जाते हैं, वे सिर्फ विचारों की दौड़ान मात्र ही कहे जा सकते हैं। ____ सांख्य तथा मीमांसा-सांख्य उस पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है जो यह मानता है कि यज्ञों में की गई हिंसा भी दोषपूर्ण है। इसमें भी उतने ही दोष हैं जितने कि अन्य समयों या जगहों पर की गई हिंसाओं में होते हैं। मीमांसा उस पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है जो कहता है-"वैदिको हिंसा, हिंसा न भवति" अर्थात यज्ञों में की गई हिंसा, हिंसा नहीं होती। इस संबंध में 'सांख्यतत्त्वकौमुदी' में एक बहत ही रोचक विवेचन प्रस्तुत किया गया है। समस्या है दु.खत्रय -आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक से छटकारा पाने की। इसके समाधान के लिए तीन साधन हैं-लौकिक उपाय-जैसे अन्न से बुभुक्षा, जल से प्यास, औषधि से ज्वर, इन्द्रियनिग्रह से काम, दान से लोभ, दया से क्रोध आदि दूर होते हैं। शास्त्रीय उपाय- वेदों के अनुसार यज्ञ करना और शास्त्र-जिज्ञासा से अभिप्राय है प्रकृति तथा पुरुष का विवेकज्ञान ।' इनमें लौकिक उपाय दुःख की ऐकान्तिक तथा आत्यन्तिक निवृत्ति नहीं कर सकते और यही बात वेदोक्त यज्ञादि कर्मकाण्ड के साथ भी है। क्योंकि ये अशुद्धि ( मल ) तथा न्यूनाधिक विषमता से युक्त हैं। अतः प्रकृति-पुरुष का विवेकज्ञान ही श्रेयस्कर है, मुक्तिदायक है। वैदिक यज्ञ धर्म या पुण्य उत्पन्न करने के साथ ही साथ अधर्म या पाप भी पैदा कर देते हैं, क्योंकि ये हिंसायुक्त होते हैं और यही इनकी अविशुद्धि का कारण है। सर्वप्रथम कारिका २ में आए हुए ‘आनुश्रविकः' शब्द के अर्थ की समस्या उठती है । 'आनुश्रविक' १. दुःखत्रयाभिघाताज् जिज्ञासा तदपघातके हेतौ । दृष्टे साऽपार्था चेन्नकान्तात्यन्ततोऽभावाद् ॥१॥ सांख्यकारिका १. २. दृष्टवदानुविकः, स ह्यविशुद्धि क्षयातिशययुक्तः ॥ तद्विपरीत: श्रेयान्, व्यक्ताव्यक्तज्ञविज्ञानाद् ॥२।। सां० का० २. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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