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________________ जैनेतर परम्पराओं में अहिंसा २७ कहा गया है कि आघात किए जाने पर अपनी रक्षा के लिए घातक पर घात करना दोषपूर्ण कर्म नहीं समझा जा सकता । किन्तु युद्ध में शत्र भी यदि घात न करता हो, डर कर भाग रहा हो या छुपना चाहता हो या हाथ जोड़कर जान की भीख माँगता हो या नशा पीकर बेहोश हो तो वह छोड़ देने योग्य है, यानी उसे मारना उचित नहीं। सामाजिक दृष्टि से राजा, स्त्री, शिशु, वृद्ध का वध तथा शरणागत का त्याग बहुत बड़ा पाप है।' इन उक्तियों को देखने के बाद ऐसा लगता है कि रामायण काल में अहिंसा को मानव जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में स्थान प्राप्त था और अहिंसा का सिद्धान्त विकास की ओर अग्रसर हो रहा था। महाभारत : वाल्मीकि रामायण की तरह महाभारत भी संस्कृत भाषा का बहुत ही प्रसिद्ध महाकाव्य है । प्रारम्भ में इसका नाम 'जय' था फिर यह 'भारत' के नाम से जाना गया और सबसे अन्त में इसने 'महा. भारत' का रूप लिया जिसे हमलोग आज १८ पर्वो से युक्त बृहदाकार ग्रन्थ के रूप में पाते हैं। इसमें प्रायः एक लाख से ज्यादा श्लोक हैं। इसके नायक अर्जुन हैं जिनके पौत्र का नाम परीक्षित और प्रपौत्र का नाम जनमेजय है। परीक्षित और जनमेजय के नाम के और भी लोग अर्जुन के वश में हो गए हैं। इनमें से प्रथम परीक्षित के समय का संबंध ई० से २००० वर्ष पहले माना १. पूर्वापकारिणं हत्वा न ह्यधर्मेण युज्यते । पूर्वापकारी भरतस्त्यागे धर्मश्च राघव ॥२४॥ वा० रा० २.६६.२४ तथा वा०रा० ६. ६.१४; अयुध्यमानं प्रच्छन्नं प्राञ्जलिं शरणागतम् । पलायमानं मत्त वा न हन्तु त्वमिहार्हसि ॥३६॥ वा. रा. ६.८०.३६. राजस्त्रीबालवृद्धानां वधे यत्पापमुच्यते । भृत्यत्यागे च यत्पापं तत्पापं प्रतिपद्यताम् ॥३७।। वा. रा. २.७५.३७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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