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________________ जैनेतर परम्परामों में महिंसा श्राद्ध-गौतम धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों के श्राद्ध में तिल, उड़द, चावल, जव तथा जल प्रयोग करने से उसे एक माह के लिए तुष्टि होती है; मछली, साधारण मग, चितकबरा मग, खरगोश, समुद्री कछुआ, सुअर और भेड़ के मांस से तीन वर्षों तक ; गाय के दूध या दूध से बने सामान से बारह वर्षों तक; वारदीस का मांस, तुलसी, लाल रंग का बकरा और गैड़े के मांस आदि से, मध के साथ बने सामान से अनेक वर्षों तक पितरों को संतोष प्राप्त होता है।' यज्ञ-सामान्यतौर से यज्ञों के दो प्रकार हैं : वे यज्ञ जिनमें पशुओं की बलि दी जाती है तथा वे यज्ञ जिनमें अन्नादि का प्रयोग होता है-किसी भी प्राणी की जान नहीं ली जाती है। किसी भी प्राणी की जान लेना निश्चित ही हिंसा है, इसलिए यज्ञ में भी पशुओं का हनन करना हिंसा कहा जा सकता है किन्तु इस सम्बन्ध में वैदिक धर्मग्रन्थों में कोई एक विचार नहीं बल्कि अनेकों मत मिलते हैं जिन्हें हम आगे आनेवाले पृष्ठों पर देखेंगे। _ पूर्णचन्द्र, नवीनचन्द्र, अर्धवार्षिक आग्रयन, इश्ति, चातुर्मास तथा अर्धवार्षिक यज्ञों के समय जानवरों की बलि होनी चाहिए, ऐसा वशिष्ठ का मत है। और बौधायन ने भी कहा है कि यज्ञ में पक्षिणस्तित्तिरिकपोतकपिञ्जलवाणिसमयूरवारणा वारणवर्जाः पञ्च विविष्किराः ॥७।। मत्स्यास्सहस्रदंष्ट्रश्चिलिचिमो वर्मी बृहच्छिरोरोमशकरिरोहितराजीवा: ।।८।। बौधायन धर्मसूत्र, प्रथम प्रश्न, खण्ड १२. आपस्तम्ब धर्मसूत्र, प्रश्न १, पटल ६, खण्ड १७, सूत्र ३१-३३, ३६,३७. वशिष्ठ ,, अ० १४, सूत्र १४, १५, ३०, ३८. ] तिलमाषव्रीहियवोदकदानसिं पितरः प्रीणान्ति | मत्स्यहरिणरुरुशशकूर्मवराहमेषमासैः संवत्सरारिण। गव्यपय: पायसैदिशवर्षाणि । वाीणसेन मांसेन कालशाकच्छागलोहखड्गमांसैम घुमित्रेश्चानन्त्यम् ।।१५।। गौतम धर्मसूत्र, अ० १५, सूत्र १५. आपस्तम्ब धर्मसूत्र, प्रश्न २, पटल ७, खं० १६, सूत्र २४,२६-२८. वशिष्ठ धर्मसूत्र, अध्याय ११, सूत्र ३४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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