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________________ जैन धर्म में अहिंसा __ अष्टक-अगहन मास की पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष की तीन अष्टमियों को तीन अष्टकाएँ होती हैं, इनको आचार्य लोग अपु. पाष्टक कहते हैं, क्योंकि ये पूआ के द्वारा की जाती हैं, लेकिन बीच में यानी पौष मास की पूर्णिमा के बाद वाली अष्टमी को गाय मारकर उसके मांस को प्रयोग करने का विधान है।' धर्मसत्रों में भी भक्ष्य-अभक्ष्य, श्राद्ध तथा अन्य यज्ञों के विषय में नियम निर्धारित किये गये हैं। भक्ष्य-अभक्ष्य-बोधायन धर्मसूत्र में कहा है कि पालतू जानवर, मांसाहारी जन्तु तथा पालतू पक्षी आदि नहीं खाना चाहिए लेकिन बकरा और भेड़ इसके अपवाद हैं। ऐसे ही पाँच अंगुलियों वाले जानवर, जैसे खरगोश आदि खाने को कहा गया है। ऐसी ही बातें आपस्तम्ब तथा वशिष्ठ धर्मसूत्रों में भी मिलती हैं। १. खादिर गृह्यसूत्र, पटल ३, खं० ३, सूत्र २७. मध्यमायां गौ ॥११ पटल ३, खं० ४, सूत्र १,७,८, १४-१७. सांखायन गृह्यसूत्र, प्र० ३, खं० १३, सूत्र ६६४. पारस्कर गृह्यसूत्र, कां० ३, काण्डिका ३, सूत्र ८. प्राश्वलायन , भ० २, कां० ४, सूत्र ७, १३. हिरण्यकेशी गृह्यसूत्र, प्रश्न २, पटल ५, खं० १५, पूर्ण. ऊजमाग्रहायण्डास्त्रयोऽपरपक्षास्तेषामेकैकस्मिन्नेकैकाष्टका भवति शाकाष्टका मांसाष्टकापूपाष्टकेति तत्र शाकमांसापूपानि हवीष्योदनं च तेषां हविषां स्थाली पाकावृताग्नी जुहुयादष्टकायै स्वाहा एकाष्टकायै स्वाहा अष्टकारी सुराधसे स्वाहा संवसराय परिवत्सरायेदावत्सरायेन्दत्सराय कृणुता नमोभिः । जैमिनी गृह्यसूत्र, २. ३. २. अभक्ष्याः पशवो ग्राम्याः ॥१॥ क्रव्यादारशकुनयश्च NRN तथा कुक्कुटसूकरम् ॥३॥ अन्यत्रा (२) जाविकेभ्यः ।।४।। भक्ष्याः श्वाविड्गोधाशशशल्यककच्छपखड्गा: खंगवर्जा: पञ्च पञ्चनखाः ॥५॥ तथय॑हरिणपृषतमहिषवराह (२)कुलुगाः कुलुगवर्जा: पञ्च द्विखुरिणः ॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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